SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 195
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सुरेन्द्रकोत्ति सुरेन्द्रकीत्ति भट्टारक नरेन्द्रकीत्ति के शिष्य थे। इनकी ग्रहस्थ अवस्था का नाम दामोदरदास था तथा ये कालागोत्रीय स्वण्डेलवाल जाति के श्रावक थे । ये बड़े मारी विद्वान् एवं संयमी श्रावक थे । प्रारम्भ से ही उदासीन रहने एवं शास्त्रों का पठन पाठन भी करते थे । एक बार भट्टारफ मरेन्द्र वोति का गांगानेर में ग्रागमन हआ तो उनका दामोदरदास ने साक्षात्कार क्षुधा । प्रथम भेट में ही ये दामोदरदास की विद्वत्ता एवं सार चातुर्य पर प्रभावित हो गये और उन्हें अपना प्रमुख शिष्य बनाने को उद्यत हो गये । जब इन्हें अपने स्वयं के शेप जीवन पर अविश्वास होने लगा तो शीघ्र ही भारवा गादी पर दामोदरदास को बिठाने की योजना बनाई गई । एक भट्टा रफ पट्टावलि में इस घटना का निम्न प्रकार उल्लेख किया है नीय गुर सोगान इरि मचि, आयो कारण प्रक्रास । मुझ काया तो एभ गति, देखि दामोदरदास ।।१५।। हूं भला कहीं तुम सभली, की दोरा मति कोई। जो दिख्या मनि दिनु करौं, तो अबसि पाटि अब हाइ ॥१२॥ तब पंडित सगझाविमो, तुम चिरजीव मुनिराज । इसी बात हिम उघरी, श्री गछपति सिरताज ॥१२७॥ घणा दीह प्रारोगि पण, काया तुम अवीचार । यारि मास पीछे ग्रहो, यो जिण धरम आचार ॥१२८॥ हया वचन पंडित कहै, प्रागम तणा प्ररय । तब गुर नरिद सुजाणियो, बहै पाट समरथ ।।१२।। सांगानेर एवं आमेर के प्रमुख श्रावकों ने एक स्वर से दामोदरदास को भट्टारक बनाने की अनुमति दे दी। वे उसके चरिन एवं विनय न्या पांडित्य की निम्न दाब्दों में प्रशसा करने लगे बड़ी जोग्य पंडित सृ अपर बल, सुन्दर सील काइ अतिनमल । यो जैनिधरम लाइक परमारग, ऐम कह्यां मंगपति कलियांग ॥१३॥ दामोदररास को सांगानेर से बड़े हाट बाट के साथ आमेर लाया गया और उन्हें सेंवतु १७२२ में विधि-वत् मट्टारक बना दिया गया। अब दामोदरररास से
SR No.090391
Book TitleRajasthan ke Jain Sant Vyaktitva evam Krititva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherGendilal Shah Jaipur
Publication Year
Total Pages322
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy