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________________ १५८ राजस्थान के जैन संत : व्यक्तित्व एवं कृतित्व के प्रसिद्ध पंडित कवि जगन्नाथ इन्हीं के शिष्य थे । पं० परमानन्दजी ने नरेन्द्रकीति के विषय में लिखते हुए कहा है कि इनके समय में टोडारायसिंह में संस्कृत पठनपाठन का अच्छा कार्य चलता था । लोग शास्त्रों के अभ्यास द्वारा अपने ज्ञान की वृद्धि करते थे। यहां शास्त्रों का भी अच्छा संग्रह था । लोगों को जनधर्म से विशेष प्रेम था । अष्टसहस्री और प्रमाण-निर्णय प्रादि न्याय-ग्रन्थों का लेखन, प्रवचन, 'पञ्चास्तिकाय प्रादि सिद्धान्त अन्थों प्रादि का प्रति लेखन कार्य तथा अनेक नूतन अन्यों का निर्माण हुप्रा था। कवि जगन्नाथ ने श्वेताम्बर-पराजय में नरेन्द्रकीति का मंगलाचरण में निम्न प्रकार उल्लेख किया है: पदांबुज-मघुम्नता भुषि नरेन्द्रकीतिगुराः । सुवादि पद भूधः प्रकरणं जगन्नाथ वाक् ।।२।। 'मरेन्द्रकीत्ति' ने कितनी ही प्रतिष्ठानों का नेतृत्व भी किया था। पावापुर (सं० १७००), गिरनार (१७०८), मालपुरा (१७१०), हस्तिनापुर (सं० १७१६) में होने वाली प्रतिष्ठाएं इन्हीं की देख-रेख में सम्पन्न हुई थीं। . -
SR No.090391
Book TitleRajasthan ke Jain Sant Vyaktitva evam Krititva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherGendilal Shah Jaipur
Publication Year
Total Pages322
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size5 MB
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