SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 193
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ भट्टारक नरेन्द्रनीति : . . . १६० दिगम्बर समाज के प्रसिद्ध तेरह पंथ की उत्पत्ति भी इन्हीं के समय में हुई पी।यह पथ सुधारवादी था और उसके द्वारा अनेक कुरीतियों का जोरदार विरोध किया था। बस्तराम साह ने अपने मिथ्यास्व खण्डन में इसका निम्न प्रकार उल्लेख किया है: भट्टारक प्रावैरिके, नरेन्द्र कीरति नाम । यह कुपंथ तिनवः समं, नयो चल्यो अध धाम ॥२४॥ इस पद्म से ज्ञात होता है कि 'नरेन्द्र कात्ति का अपने समय हो से विरोध होने लगाया और इनको मान्यतामों का विरोध करने के लिए कुछ सुधारकों ने तेरहपंथ नाम से एक पथ को जन्म दिया । लेकिन विरोध होते हुए भी नरेन्द्रकीति अपने मिशन के पक्के थे और स्थान २ पर घूमनार साहित्य एवं संस्कृति का प्रचार किया करते थे । मह अवश्य था कि ये सन्त अपने प्राध्यात्मिक उत्थान की ओर कम ध्यान देने लगे में तथा मौकिक लदियों में फंसने आ रहे थे । इसलिए उनका धीरेधीरे विरोध बढ़ रहा था, जिसने महापंडित टोडरमल के समय में जन रूप धारण कर लिया और इन सानों के महत्व को ही सदा के लिए समाप्त कर दिया। नरेन्द्रकोत्ति' ने अपने समय में आमेर के प्रसिद्ध भधारकीय शास्त्र भण्डार को सुरक्षित रखा और उसमें नयी २ प्रतियां, लिखवाकर विराजमान हाई पई। "तीर्थकर छोयीसना छप्पय" नाम से एक रचना मिली है, जो स भवतः इन्हीं नरेन्द्रकीत्ति की मालूम होती है । इस रचना का अन्तिम पद्य निम्न प्रकार है एकादया वर मंग, बउद पूरव सह जाएउ । चउद प्रकीर्गिक शुद्ध, पंच पूलिका वखाग्रु॥ परि पंच परिकर्भ सूत्र, प्रथमह दिनि योगह । तिहनां पद शत एक, अकि द्वादश कोटिंगह ।। भासी लक्ष अधिक बली, सहस्र अठावन पंच पद । इम प्राचार्य नरेन्द्रकीरति कहर, धीश्रु त ज्ञान पठधरीय मुदं । संवत् १७२२ तक ये भट्टारक रहे और इसी वर्ष महापंडित-'आगाधर' कृत प्रतिष्ठा पाठ की एक हस्त लिखित प्रति इनके शिष्य आचार्य श्रीचन्द्रकीति, घासीराम, पं० भीवसी एवं मयाचन्द के पठनार्थ मेंद की गई। कितने ही स्तोत्रों की हिन्दी मगध टीका करने बाले 'अखगराज' इन्हीं के शिष्य थे। संवत् १७१७ में संस्कृत मंजरी की प्रति इन्हें भेंट की गई थी । टोडारायसिंह
SR No.090391
Book TitleRajasthan ke Jain Sant Vyaktitva evam Krititva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherGendilal Shah Jaipur
Publication Year
Total Pages322
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy