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________________ १७० राजस्थान के जन सस : व्यक्तिव एवं कृतित्व उनका नाम भट्टारक सुरेन्द्रवोत्ति हो गया । इनका पाटोत्सव बड़ी धूम धाम से हुआ । स्वर्ण कलश से स्नान कराया गया तथा सारे राजस्थान में प्रतिष्टित थावकों ने इस महोत्सव में भाग लिया। सुरेन्द्रकीति की प्रशंसा में लिखा हुआ एका पद्य देखिये रात्रामे साल भरणं वाइसे संजम सावरण मधि ग्रह्यो सुभ पाठ मंगलवार सही जोतिग मिले परिव किसन कायो। मारयो मद मोह मिथ्यातम हर मउ रुप महा वैराग धरयो । धर्मवंत घरारत नागर सागर गोतम सौ गुण ग्यान भरयो । तप तेज सुकाइ अनंत करे सबक तणो तिन मारण हरणे, थोर थंभण पाट नरिद तरणी सुरीयंद भट्टारिक साध भरणं ॥१६६॥ सुरेन्द्रकीसि की योग्यता एवं संयम को चारों ओर प्रशंसा होने लगी और शीघ्र ही इन्होंने सारे राजस्थान पर अपना प्रभाव स्थापित कर लिया। ये केवल ११ वर्ष भट्टारका रहे लेकिन इस अल्प समय में ही इन्होंने सब और बिहार करके समाज सुधार एवं साहित्य प्रचार का बड़ा भारी कार्य किया । इन्हें कितने ही स्थानों से निमन्त्रणा मिलले । अब ये अहार के लिये जाते तो श्रावक इन पर सोने चांदी का सिक्के न्योछावर करते और इनके आगमन से अपने घर को पवित्र समझते । वास्तव में समाज में इन्हें अत्यधिक आदर एवं सत्कार मिला। सुरेन्द्रवीति साहित्यिक भी थे । इनके काल में भामेर शास्त्र भण्डार की अच्छी प्रगति रही । कितनी ही नवीन प्रतियां लिखवायी गयी और कितने ही प्रयों का जीर्णोद्धार किया गया।
SR No.090391
Book TitleRajasthan ke Jain Sant Vyaktitva evam Krititva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherGendilal Shah Jaipur
Publication Year
Total Pages322
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size5 MB
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