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________________ १५४ राजस्थान के जैन संत : व्यक्तित्व एवं कृतित्व १. पंचकल्याणक गौत यह कवि की सबसे बड़ी कृति है जो पांच कल्याणकों की दृष्टि से पांच दालों में विभक्त है। इसमें शान्तिनाथ के पांचों कल्याणकों का वर्णन है। जन्म कल्याणक ढाल में सबसे अधिक पद्य है । जिनको संख्या २० है। पूरे गीत में ७१ पद्य हैं । गी: ANI रा है। तग 1 सामान्य है। एक उदाहरण देखिए। श्री शान्तिनाथ केवली रे, व्यावहार करे जिनराय । समोवसरण सहित मल्या रे, बंदित अमर सु पाय ।। द्रुपद : नरनारी सुख कर से विये रे, सोलमो श्री शान्तिनाथ । अविचल पद जे पामयो रे, मुझ मत राखो सुझ साय ।।१।। सम्मेद सिखर जिन आवयोरे, समोसरण करी दूर। ध्यानधनो क्रम क्षय करीरे, स्थानक गया सु प्रसीध ।।२।। श्री घोघा रूप पूरयलु रे, चन्द्रप्रभ चैत्याल' । श्री मूलसंघ मनोहर करे, लक्ष्मीचन्द्र गुणमाल ॥३॥ श्री प्रभेचन्द पदेशोहे रे, अभयसुनन्दि सुनन्द । .. तस पाटे प्रगट हबोरे, सुरी रत्नकीरति मुनी चन्द ।।४॥ तेह तणा चरण कमलनयनिरे, पंचकल्याणक किंध । . . अहा जनसागर शम कहे, नर नारी गाउ मु प्रसिद्ध ॥५॥ २, जसोधर गीत इसमें यशोघर चरित की कथा का राक्षिप्त सार दिया गया है जिसमें केवल १८ पध हैं। गीत की भाषा राजस्थानी है। जीव हिसाहू नवि करू', प्राण जाय तो जाय ।। हद देखी चन्द्र मती कहे, पीवमी करीये काय ।।६।। मौन करी राजा रह्यो, पाक फडो कीय। . .:. माता सहित जसोवरे, देवीने बल दीव ॥७॥ . ३. गुर्वावलि गीत यह एक ऐतिहासिक गीत है जिसमें सरस्वती गच्छ की बलात्कारगण शाखा के भ० देवेन्द्रकीति को परम्परा में होने वाले भट्टारकों का साक्षिप्त परिचय दिया गया हैं । गीत सरल एवं रारस भाषा में निबद्ध है। .
SR No.090391
Book TitleRajasthan ke Jain Sant Vyaktitva evam Krititva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherGendilal Shah Jaipur
Publication Year
Total Pages322
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size5 MB
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