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________________ ब्रह्म जयसागर जयसागर म० रत्नकीति के प्रमुख शिष्यों में से थे। ये ब्रह्मचारी थे और जीवन मरे इसी पद पर रहते हुए अपना श्रात्म विकास करते रहे थे। मं० रनको जिनका परिचय पहले दिया जा चुका है साहित्य के अनन्य उपासक थे इसलिए जयसागर भी अपने गुरु के समान ही साहित्याराधना में लग गये। उस समय हिन्दी का विकास हो रहा था। विद्वानों एवं जनसाधारण की रुचि हिन्दी ग्रन्थों को पढ़ने में अधिक हो रही थी इसलिए जयसागर ने अपना क्षेत्र हिन्दी रचनाओं तक हो सीमित रखा । जयसागर के जीवन के सम्बन्ध में अभी तक कोई विशेष जानकारी प्राप्त नहीं हो सकी है। इन्होंने प्रपनी सभी रचनाओं में भ० रत्नकीप्त का उल्लेख किया है । रनकीर्ति के पश्चात होने वाले भ० कुमुदचन्द्र का कहीं भी नामोल्लेख नहीं किया है इससे यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि इनका भ० रत्नक्रीति के शासनकाल में ही स्वर्गवास हो गया था । रत्नकीति संवत् १६५६ तक भट्टारक रहे इसलिए ब्रह्म जयसागर का समय संवत् १५८० से १६५५ तक का माना जा सकता है । घोघा नगर इनका प्रमुख साहित्यिक केन्द्र था। कवि की अब तक जितनी रचनाओं की खोज हो सकी है उनके नाम निम्न प्रकार हैं --- १. नेमिनाथ गीत ३. जसोधर गीत ५. न ७. संकट हर पाइजिन गीत ९. मट्टारक रत्नकीर्ति पूजा गीत ११- २० विभिन्न पद एवं गीत २. नेमिनाथ गीत ४. पंचकल्याणक गीत ६. संघपति मल्लिदास नी गीत ८. क्षेत्रपाल गोत १०. शीतलनाथ भी विनती जयसागर लघु कृतियां लिखने में विशेष रुचि रखते थे। इनके गुरु स्वयं रत्नकीति भी लघु रचनाओं को ही अधिक पसन्द करते थे इसलिए इन्होंने भी उसी मार्ग का अनुसरण किया । इसकी कुछ प्रमुख रचनाओं का परिचय निम्न प्रकार है ।
SR No.090391
Book TitleRajasthan ke Jain Sant Vyaktitva evam Krititva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherGendilal Shah Jaipur
Publication Year
Total Pages322
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size5 MB
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