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________________ बारडोली के संत कुमुदचंद्र वादि गमायो'–पद में कवि ने उन मनुष्यों को चेतावनी दी है, जो जीवन का कोई सयुपयोग नहीं करते और यों ही जगत में आकर चल देते हैं। यह पद अत्यधिक सुन्दर एवं भावपूर्ण है। इसी तरह 'कुमुदधन्द' ने 'नेमिनाथ-राजुल' के जीवन पर जो पद-साहित्य लिखा है, वह भी अत्यधिक महत्वपूर्ण है। "सस्त्री रो अब तो रह्यो नहिं जात''--में राजुल की मनोदशा का अच्छा चित्र उपस्थित किया है । इसी तरह "प्राली री अबिरखा ऋतु आजु आई"...में राजुल के रूप में- विरहिणीनारी के मन में उठने वाले भावों को प्रस्तुत किया है। इस प्रकार 'कुमुदयन्द्र' ने अपने पदसाहित्य में अध्यात्म, भक्ति एवं वैराग्य परक पद रचना के अतिरिक्त 'राजुल-मि' के जीवन पर जो पद-साहित्य लिखा है, यह भी हिन्दी-पद-साहित्य एवं विशेषतः जनसाहित्य में एक नई परम्परा को जन्म देने वाला रहा था। आगे होने वाले कवियों ने इन दोनों कवियों की इस शैली का पर्याप्त अनुसरण किया था। कषि की अब तक उपलब्ध कृतियों के नाम निम्न प्रकार हैं १. - मि विनती २. प्रादिनाय विवाहलो २. नेमिनाथ द्वादशमासा ४, नेमीश्वर हमश्री ५. अण्य रति गीत ६. हिंदोला गीत ७. वणजारा गीत ८. ६श लक्षण धर्मवत मीत .. शील गौत १०. सप्त व्यसन गीत ११. पठाई गीत १२. भरतेश्वर गीत १३. पार्श्वनाथ गीत १४. अन्धोलड़ी गीत १५. आरसी गीत १६. जन्म कल्याणक गीत १७. चिंतामणि पाश्र्वनाथ मीत
SR No.090391
Book TitleRajasthan ke Jain Sant Vyaktitva evam Krititva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherGendilal Shah Jaipur
Publication Year
Total Pages322
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size5 MB
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