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________________ राजस्थान के जैन संत : व्यक्तित्व एव कृतित्व तथा राजस्थान में अच्छी प्रतिष्ठा थी । जैन साहित्य एवं सिद्धान्त का उन्हें अप्रतिम ज्ञान था। वे संभवतः आशु कवि भी थे, इसलिए श्रावकों एवं जन साधारण को पद्य रूप में ही कमी २ उपदेश दिया करते थे । इनके शिष्यों ने जो कुछ इनके जीवन एवं गतिविधियों के बारे में लिखा है, वह इनके अभूतपूर्व व्यक्तित्व की एक झलक प्रस्तुत करता है। शिष्य परिवार मे तो भद्वारकों के बहुत से शिष्य हुमा करते थे जिनमें प्राचार्य, मुनि, प्रमचारी, आयिका यादि होते थे। अभी जो रचनाए' उपलब्ध हुई है, उनमें अभय चंद्र, ब्रह्मसागर, धर्मसागर, संयमसागर, जयसागर एवं गणेशसागर प्रादि के नाम उल्लेखनीय हैं । ये सभी शिष्य हिन्दी एवं संस्कृत के भारी ।वद्वान थे और इनको ब्रहत सो रचनाएं उपलब्ध हो चुकी हैं । अभमचन्द्र इनके पश्चात् भट्टारक बने । इनके एवं इनके शिष्य परिवार के विषय में प्रागे प्रकाश डाला जावेगा । कुमुदचन्द्र की अब तक २८ रचनाएँ एवं पद उपलब्ध हो चुके हैं उनके नाम निम्न प्रकार हैं: मूल्यांकन : "भा रलकीति' ने जो साहित्य-निर्माण की पावन-परम्परा छोड़ी थी, उसे उनके उत्तराधिकारी 'भ० कुमुदचन्द्र ने अच्छी तरह से निभाया । यही नहीं 'कुमुद चन्द्र' ने अपने गुरु से भी अधिक कृतियां लिखी और भारतीय समाज को अध्यात्म एवं भक्ति के साथ साथ शृगार एवं वीर रस का भी प्रास्वादन कराया। 'कुमुदचन्द्र के समय देश पर मुगल शासन था, इसलिए जहां-तहां युद्ध होते रहते थे। जनता में देश रक्षा के प्रति जागरूकता थी, इसलिए कवि वे भरत-बाहुबलि छन्द में जो युद्धवर्णन किया है- वह तत्कालीन जनता की मांग के अनुसार था। इससे उन्होंने पह भी सिद्ध किया कि जैन-कश्चि यद्यपि साधारणतः आध्यात्म एवं भक्ति परक कृतियां लिखने में ही अधिक रचि रखते हैं- लेकिन प्रावश्यकता हो तो वे वीर रस प्रधान रचना भी देश एवं समाज के समक्ष उपस्थित कर सकते हैं। 'कुमुदचन्द्र के द्वारा निबद्ध 'पद-साहित्य' भी हिन्दी साहित्य की उत्तम निधि है । उन्होंने "जो तुम दीनदयाल कहावत" पप में अपने हृदय को भगवान के समक्ष निकाल कर रख लिया है और वह अपने भक्तों के प्रति की जाने वाली उपेक्षा को ओर भी प्रभु का ध्यान आकृष्ट करना चाहता है और फिर "पनापनि कुक बीजे" के रूप में प्रभु और मक्त के सम्बन्धों का बखान करता है। 'म तो नर भव
SR No.090391
Book TitleRajasthan ke Jain Sant Vyaktitva evam Krititva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherGendilal Shah Jaipur
Publication Year
Total Pages322
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size5 MB
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