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________________ बारडोली के संत कुमुदचंद्र १३७ इन जैनों के प्रमुख संत ( भट्टारक) के पद पर अभिषेक कर दिया । " यह सारा संघपति कान्हू जी, संध बहिन जोनाटे, सहस्त्रकरणा एवं उनकी पत्नी तेजलदे, भाई मल्लदास एवं बहिन मोहनदे गोपाल आदि को या । तथा इन्होंने कठिन परिश्रम करके इस महोत्सव को सफल तभी से कुमुदनन्य बारडोली के संत कहलाने लगे । उपस्थिति में हुआ बनाया था । २ बारडोली नगर एक लंबे समय तक आध्यात्मिक, साहित्यिक एवं धार्मिक गतिविधियों का केन्द्र रहा। संत कुमुदवन्द्र के उपदेशामृत को सुनने के लिए वहां धर्मप्रेमी सज्जनों का हमेशा ही आना जाना रहता । कभी तीर्थयात्रा करने वालों का संघ उनका आशीर्वाद लेने आता तो कभी अपने-अपने निवास स्थान के रजकरणों को संत के पैरों से पवित्र कराने के लिए उन्हें निमन्त्रण देने वाले यहां आते । संवत् DICT - १. संवत् सोल छपन्ने वैशाखे प्रकट पटोवर धाप्या रे । नीति गोर बारडोली वर सूर मंत्र शुभ आप्या रे । भाई रे मन मोहन मुनिवर सरस्वती गच्छ सोहं । कुमुदचव भट्टारक उदयो भवियण सम मोहंत रे || - बारडोली मध्ये रे, पाट प्रतिष्ठा कीध मनोहार । एक शत आठ कुम्भ रे, ढाल्या निर्मल जल अतिसार || सूर मंत्र आपयो रे, सकलसंघ सानिध्य जयकार | कुमुदचन्द्र नाम का रे, संघवि कुटुम्ब प्रतपो उदार || २. संघपति कहांन जो संघवेण जीवावेनो कन्त । सहसकरण सोहे रे तरुणी तेजलदे जयवंत || गुरु स्तुति गणेशकृत संघवो कहान जी भाइया बीर भाई रे । मल्लिबास जमला गोपाल रे ॥ मल्लवास मनहरु रे नारी मोहन दे अति संत । रमादे वीर भाई रे गोपाल बेजलदे मन मोहन्त ||६|| छपने संवत्सरे उछव अति कर्यो रे । उंघ मेली बाल गोपाल रे ॥ गुरुगीत गणेश कृत गुरु- गीत गीत-गणेश कुल
SR No.090391
Book TitleRajasthan ke Jain Sant Vyaktitva evam Krititva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherGendilal Shah Jaipur
Publication Year
Total Pages322
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size5 MB
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