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________________ सन्त सुमति कीत्ति ११७ 'सुमतिकीति' १६-१७ वीं शताब्दि के विद्वान थे । गुजरात एवं राजस्थान दोनों ही प्रदेश इनके पद चिह्नों से पावन बने थे । साहित्य-सर्जन एवं आत्म-साधना ही इनयों का प्रमुत कामालेकि हिना इनका गांव गांव में जन-जाग्रति पैदा करना । लोग अनपढ थे । मुइनाओं के चक्कर में फंमे हुए थे। वास्तविक धर्म की ओर से इनका ध्यान कम हो गया था और मिथ्याडम्बरों की ओर प्रवृत्ति होने लगी थी। यही कारण है कि 'धर्म परीक्षा रास' की सर्व प्रथम इन्होंने रचना की । यह इनकी सबसे बड़ी कृति है। जिमसे 'अमितिगति प्राचार्य' द्वारा निबद्ध 'धर्म परीक्षा' का सार रूप में वर्णन है । कवि की अन्य रचनाएं लघु होते हुए भी काव्यत्व शक्ति से परिपूर्ण है । गोत, पद एवं संवाद के रूप में इन्होंने जो रचनाएं प्रस्तुत की हैं, वे पाठक की रुचि को जाग्रत करने वाली हैं। 'सुमति कीति' का अभी और भी साहित्य मिलना चाहिए और वह हमारी खोज पर माघारित है।
SR No.090391
Book TitleRajasthan ke Jain Sant Vyaktitva evam Krititva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherGendilal Shah Jaipur
Publication Year
Total Pages322
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size5 MB
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