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________________ ११६ पंडित हेमे प्रचा वस्तु रणाय गर्ने वीरदास | हासोट नगर पूरी हुबो, धर्म परीक्षा रास ॥ संवत् सोल पंचवीसमे मार्गसिर सुदि बीज बार | यही रतिया से सार || ४. जिमबर स्वामी वोनती राजस्थान के जैन संत : व्यक्तित्व एवं कृतित्व यह एक स्तवन है, जिसमें २३ छन्द है । रचना साधारण है । एक पद्म देखिये धन्य हाथ ते नर तरणा, जे जिन पुजन्स । नेत्र सफल स्वामी हवां, जे तुम निरखत ॥ श्रवण सारवली ते कह्या, जिनवाणी सुरांत | मन हुं मुनिवर तर जे तुम्ह ध्यायंत ॥ थारु रसना ते कहीए जे लीजे जिन नाम । जिन चरण कमल जे नमि ते जाणो अभिराम ॥४॥ 2 ५. जिल्ह्नाबन्त विवाह: — यह एक लघु रचना है - जिसमें केवल ११ छन्द हैं। इसमें जीभ और दांत एक दूसरे में होने वाले विवाद का वर्णन है । भाषा सरल है। एक उदाहरण देखिए - कठिन क बचन न बोलीमि, रह्यां एकठा बोयरे । पंचलोका मांहि इम मशो, जिह्वा करे बने होयरे ॥४२॥ प्रह्मी चार्चा चूरी रसकंसू, प्रो करु अपरमादरे । haण विधारी बापड़ी, विठी करेय सवाद रे ॥३॥ बसन्त विलास गोतः इसमें २२ छन्द हैं - जिनमें नेमिनाथ के विवाह प्रसंग को लेकर रचना की गई है। रचना साधारणतः मच्छी है।
SR No.090391
Book TitleRajasthan ke Jain Sant Vyaktitva evam Krititva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherGendilal Shah Jaipur
Publication Year
Total Pages322
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size5 MB
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