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राजस्थान के जैन संत : व्यक्तित्व एवं कृतवि
जब वे दोनों युद्ध में अवतरित होते हैं तो उनको शक्ति का कवि ने निम्न प्रकार से वर्णन किया है
षट् पय छन्द
आमत भूठु परधानु, मंतु तत्त खिरिण कीयउ । मा नु कोहु अरू दोहु मोह, इकू युद्धउ थीयउ । माया कलहि कलेसु थापु, संतापु छदम दुग्छु । कम्म मिथ्या वासरउ, प्राइ अद्धम्मि किंगउ पाल्नु । कुविसनु कुसीलु कुमतु जुडिउ रागि दोषि प्राइ लहिउ । अप्पराउ सपनु वलं देखि करि लोह रा उ तब गगहिउ ॥७२॥
गीतिका छन्द
आईयो सीलु सुद्धम्मु समकतु, न्यानु चरित संवरों। वैरागु, तपु, करूणा, महायत खिमा चित्ति संजमु थिरु। . अज्जउ मुमद्दउ मुत्ति उपरामु, द्धम्मु सो आकिंत्रणों। इन मेलि दनु मंतोप राजा, लोम सिउ मंडइ रणो॥७६।।
रचना में लोम के अवगुणों का विस्तृत वर्णन किया गया है, क्योंकि अनादि काल ने चारों गतियों में घूमने पर भी यह लोभ किसी का पीछा नहीं छोड़ता ।
गाथा
भमियउ अनादिकाले चहुंगति, मम्मि जीउ बहु जोनी। बसि करि न तेनि सक्कियउ, यह दारणु. लोम प्रचंड ।।१४।।
दोहा
दारणु लीम प्रचं? यहूं, फिरि फिरि बहु दुःख दोय । ध्यापि रया बलि प्रपद, लख चउरासी जीय ।।१५।।
लोभ तेल के समान है, जैसे जल में तेल की बून्द पड़ते ही वह चारों ओर फैल जाती है, उसी प्रकार लोभ को फिचित मात्रा भी इस जीव को चतुर्गति में भ्रमण कराने में समर्थ है । भगवान् महावीर ने संसार में लोभ को सबसे बुरा पाप कहा है । लोभ ने साधुभों तक को नहीं छोड़ा । वे भी मन के मध्य मोक्ष रूपी लक्ष्मी को पाने की इच्छा से फिरते हैं । इन्हीं भावों को कवि के शब्दों में पहिए