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________________ ब्रह्म भूधराज जिव तेल बून्द जल माहि पडइ, सा पसरि रहे माजनइ छाइ । तिल लोभु करइ राईस चारु, प्रगटावे जगि में रह विधारू ।।२२।। वण मझि मुनीसर जे वसहि, सिव रमरिग लोभु तिन हिमइ माहि । इकि लोभि लगि पर भूमि आहि, पर करहि सेव जीउ जीउ मणहि ॥२४॥ मणवु तिजंचहे नर मुरह, होडाये गति चारि । वीर भरपर गोइम निसुणि, लोभ बुरा संसारि. ।।४।। 'संतोष जय तिलक' को कवि ने हिसार नगर में संवत् १५९१ में समाप्त किया था । इसका स्वयं कवि ने अपनी रचना के अन्त में उल्लेख किया है । संतोपह जयनिल जपिउ, हिसार नयर मझ में 1 जे सुगहि भविय इक्कमनि, ते पायहि वंछिय सुक्न ॥११।। संत्रति पनरह इक्याण मद्दवि, सिम परिख पंचमी दिवसे । सुबकवारि स्वाति वर्ष जेउ, तहि जारिण भनामेण ॥१३०।। 'संतोष जय तिलक' कृति प्राचीन राजस्थानी की एक सुन्दर रचना है, जिसकी भाषा पर अपना का अधिक प्रभाव है। अकारान्त शब्दों को उकारात बनाकर प्रयोग करना कवि को अधिक प्रभोष्ट था । इसमें १३१ पद्य हैं। जो साटिक, रड, रंगिक्का, गाथा, षटपद, दोहा, पद्धडी, अडिल्ल, रासा, चंदाइ, गीतिका, तोटक, प्रादि छन्दों में विभक्त हैं। रचना भाषा विज्ञान अध्ययन की दृष्टि में उत्तम है। यह अभी तक अप्रकाशित है। इसकी एक हस्तलिखित प्रति दिए जैन मन्दिर नेमिनाथ बून्दी (र)जस्थान) के गुटका मख्या १७४ में संग्रहीत है । ३. नेतन पुआल धमाल' यह कवि के रूपक काव्यों में रावसे उत्तम रचना है। कवि ने इसमें जीव एवं पुद्गल के पारस्परिक सम्बन्धों का तुलनात्मक अध्ययन किया है।"चेतन मुगु ! निर गुस्स जड़ सिउ संगति कीजइ" को यह बार बार दोहराता है। वास्तव में यह एक सम्वादात्मक काव्य है जिसके नीय एवं जड़ : 'अजीव' दोनों मायक हैं। स्वयं anuman-rai- manaru waon१. शास्त्र भण्डार वि. जैन मन्विर नागदा दून्दी के पुटका संख्या १७४ में इसको प्रति संग्रहीत है।
SR No.090391
Book TitleRajasthan ke Jain Sant Vyaktitva evam Krititva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherGendilal Shah Jaipur
Publication Year
Total Pages322
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size5 MB
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