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अपूर्ण प्रतियां है, इससे इसके प्रचारका अनुमान लगाया जा सकता है। इस बालावबोधके रचयिता मेरुसुन्दर बहुत बड़े भाषा टीकाकार थे। इनके अनेक जैन जनेतर छन्द, अलंकार, काव्य, सिद्धान्त व धर्मग्रन्यों के बालावबोध मिले हैं जिनमें कथाएंभी प्रचुर परिमाणमें दी गई है। उनसे पटिशतक बालावबोध छपभी चुका है।
पुष्पमाला प्रकरणमें हिंसा, अहिंसा, विविध प्रकारके दान, शील, तप, भाव, सम्यक्त्व, व्रत, समिति, गुप्ति, स्वाध्याय, विहार, कत्य, अकृत्य, मोक्ष देतु, उत्सर्ग-अपवाद, इन्द्रियजय, कषाय निग्रह, गुरु शिष्य स्वरूप, आलोचना या दोष निवारण वैराग्य, विनय, वैयावृत्य, आराधना, विराधना आदि विषयोंका तुषान कथाओं के साथ ही सुन्नर विमन मिलता है। अतः यह ग्रन्थ हर व्यक्ति के लिए पठनीय और लाभप्रद है पर खेद है अभीतक ऐसे उपयोगी व महत्वपूर्ण प्रन्थका राष्ट्रभाषा-हिन्दी | मावि में अनुवाद प्रकाशित नहीं हुआ । इससे जन साधारण इसके महत्त्वसे अपरिचित रहा और जो लाभ उसे मिलना चाहिए था, नहीं मिल सका।
इसी प्रकारके अन्य प्रन्धरत्नोंसे जैन साहित्य भण्डार भरा पड़ा है। पर वे अधिकांश अन्य प्रकाशित हैं और जो थोडसे प्रकाशित हुए हैं वे भी प्राकृत संस्कृत या पुरानी लोक भाषाओं में हुए हैं जिससे विद्वानों तकही उनकी जानकारी सीमित है। केवल साधु-साधिके व्याख्यानमेंही कुछ प्रन्योंका उपयोग यदा कदा होता है।
वर्तमान युगमें नैतिक और धार्मिक प्रन्धोंके स्वाध्यायकी रुचि निरन्तर घटती जा रही है। वर्तमान शिक्षामें तो उनका स्थान रहा ही नहीं और मुनि यति गणभी आगे जसे स्राध्यायशील नहीं रहे । यद्यपि पहले की अपेक्षा अब प्रन्म बहुत सुलभ
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