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महो० सिद्धान्तवि शिष्यों में प्रस्तुत लघुवृत्तिके रचयिता वाचक साधुसोमकी ही रचनाएं सबसे अधिक मिलती है। संग्रहणी अवचूरी इनकी सबसे पहली रचना है, इसकी प्रशस्ति जैसलमेर भण्डारकी नवीन सूचिके पृष्ठ २६९ में इस प्रकार छपी है
अन्त - श्रीखर ( तर ) गच्छे श्रीजिनभद्रसूरि शिष्य श्रीसिद्धान्तरुचि महोपाध्याय शिष्येण साधुसोमगणिना परोपकृतये अबचूरिरियं लिखिता चिरं नन्यात् संवत् १५०१ वर्षे श्रीमालवदेशे श्रीमंदवदुर्गे श्रीसिद्धान्तरुचि महोपाध्याय पादाम्बुजचंचरीकेण साना यथावबोधं लिखितेयं सतां हर्षाय भूयात् ॥ श्रीगुरुभ्यो नमः ॥ श्री ॥
इनकी अन्य रचनाओं में जिनवल्लभसूरि कृत चरित्रपंचक वृति सं० १५१९, नन्दीश्वरस्तव वृत्ति तथा जिनेश्वरसूरिकृत चंद्रप्रभ वृत्ति अपूर्ण प्रति बीकानेरके खरतर आचार्य शाखा भण्डार में प्राप्त हैं, वे भी आपकी ही रचनाएं लगती हैं। पंचायती भंडार, बड़ा उपासरा जैसलमेर में आपके रचित स्तोत्रों के संग्रहकी ६ पत्रोंकी प्रति देखी थी। नागद्रह पार्श्वस्तोत्र, संसारदावास्तुति er ( केशरियानाथ भण्डार जोधपुर ) का उल्लेख भी हमारे खरतर गच्छ साहित्य सूचि में है ।
tariat her सूत्रकी दो प्रतियां भावनगर और जैसउमेरके सपागच्छीय भण्डारमें सं० १५१७ और १५२४ की पाटण में लिखित प्राप्त हैं। उनकी २८ और २ (३) ६ लोकों की प्रशस्तियां वा साधुसोमगणिनेही रची थी। जिनमें से प्रथम प्रशस्ति जैन सत्य प्रकाश वर्ष ८ अंक १० पृष्ठ २९२ में प्रकाशित है और दूसरी ऐतिहासिक महवपूर्ण प्रशस्ति ३(२) ६ लोकोंकी हमने जैन सत्य प्रकाश वर्ष २० अंक ७ पृष्ठ १४६ में प्रकाशित कर दी है। इनमेंसे भावनगर संघ भण्डारी स्वर्णोश्वरी प्रति महो० freeही बाछा सेर शाह मलूकी भार्या माणकदेने लिखाई थी । उससे पूर्व मी मलूने एक लाख लोक