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________________ tarका लक्षण अहंकार ममकार करना यह सब परसे एकत्र मानने रूप मिथ्यास्त्र हैं। असल में परद्रव्ये व faareera कोई आत्मा के नहीं हैं, आत्मा हमेशा टंकोस्कोर्ण ज्ञायक स्वभाव पुष्करपलाशखत् निर्लेप ( शुद्ध परसे भिन्न एकत्वविभक्त ) है, परन्तु भ्रमवश व एक आधार, एक काल में aftarai, विपरीत बुद्धि हो जाती है यह तात्पर्य है यही मूलमें भूल, संसार परिभ्रमण या पंचपरावर्तनका कारण है अतः उस मूलको निकालना सम्यक् पुरुषार्थं है, जीवनकी सफलता है अन्यथा जैसा मनुष्य जन्म पाया तैसा न पाया एक बराबर है किम्बहुना । सम्यग्दर्शन प्राप्त होनेकी योग्यता क्या है ? ( कौन जोव सम्यग्दर्शनको प्राप्त कर सकता है ) जो जीव चारों गतियों में से किसी एक गतिमें रहनेवाला हो, भव्य हो, संज्ञी ( मनसहित ) हो, विशुद्ध परिणामी ( मन्दकपायी ) हो, जगला हुआ हो ( बेहोश या अनुपयुक्त न हो ) अथवा स्त्रोन्मुख हो, विचारशील हो, पर्याप्तक हो (शक्ति सम्पन्न हो । ज्ञानी हो ( साकार उपयोगवाला हो ) निकट संसारी हो ( जिसका संसारमें रहनेका काल अधिक से अधिक अर्धपुद्गल परावर्तन मात्र रह गया हो। ऐसी योग्यता वाला हो, वही सम्यग्दर्शन प्राप्त कर सकता है। अर्थात् उसीमें योग्यता है दूसरे में नहीं है, यह नियम है अस्तु । मोक्ष प्राप्त होनेकी योग्यता क्या है ? ( अनेक कारणोंसे मोक्षको प्राप्ति होती है } पह पद स्वभाव पूरे उदय, निश्चय उद्यम काल है पक्षपात मिध्याध्व नऊ, सर्वांगी शिव चाल || अर्थ - पद अर्थात् मुनिपदका होना स्वभाव अर्थात् सम्यग्दर्शनादिका होना, पूरब उदय अर्थात् कर्मों को निर्जा होना ( परका संयोग छूटना ) यथार्थ ( निश्चय ) पुरुषार्थका करना, ( अनुकूल वा साधक पुरुषार्थं करना ) काललब्धि ( उस कालकी प्राप्ति ) का होना, पक्षपातका छूटना (निर्विकल्पता होना या स्वभावलीनता रहना) मिध्यात्वका छूटना (विपरीत बुद्धिका हटना ) इन सब अनेक मुख्य कारणोंके प्राप्त हो जाने पर ही जीव मोक्षको प्राप्त कर सकता है अन्यथा नहीं यह नियम है। बस, यही मोक्ष प्राप्त होनेकी योग्यता है । इन्होंमें सब शुद्धियां अन्त १. चदुर्गादिभव्य सणी सुविसुद्ध जग्गमाणपज्जतो । संसारतडे विडो गाणी पावे सम्मतं ॥ ३०७ ॥ स्वा. का. अनुप्रेक्षा । दुर्गादिभवणी पज्जतो सुज्झगो व सागारो । जागारी सल्लेसो सलोि सम्ममुवगमई । ६५२ ।। जीव. गोम्मटसार । दुर्गादिभिच्छो राणी पुण्णो गन्भज त्रिशुद्ध सागारों | पढमुसगं स गिदि पंचमवरल चरिमहि ॥ २॥ लम्बिसार
SR No.090388
Book TitlePurusharthsiddhyupay
Original Sutra AuthorAmrutchandracharya
AuthorMunnalal Randheliya Varni
PublisherSwadhin Granthamala Sagar
Publication Year
Total Pages478
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size14 MB
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