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________________ १९२ সুখবিসুখ जाता है ? क्या परिग्रहका और रात्रि भोजनका परस्पर सम्बन्ध है ? ( व्याप्ति है ) इसका उत्तर दिया जाता है कि दोनोंका कार्य समान होनेसे परस्पर संगति है यथा-- रात्रौ भुंजानानां यस्मादनिवारिता भवति हिंसा । हिंसाविरतैस्तस्मात्यक्तव्या रात्रिभुक्तिरपि ॥ १२९ ।। पश्च रात्रि समयके भोजनमें भी जीध बहुतसे मरते हैं। अतः अहिंसाबसके धारी रात्रि भोजको सजते हैं। वाहिर हिंसा दिस पड़ती है अन्तरंग भी होती है। रागमूक हिंसा होती है-भावप्रापको हरती है॥१९॥ अन्वय अर्थ----आचार्य कहते हैं कि [ यस्मात् रात्रौ भुजानाना अनिवारिता हिंसा भन्नति ] जब कि रात्रिको भोजन करनेवाले जीवोंके हिंसा ( जीवघात ) का होना अनिवार्य है अर्थात् भावहिंसा व द्रव्यहिंसा दोनों होती हैं | ससमाव हिंसाविरतैः रात्रिभुकिरपि स्यमाया ] तब हिसाके त्यागियों को अर्थात् अहिंसावत (धर्म) के पालनेवालोंको नियमसे रात्रिभोजनका त्याग कर हो देना चाहिये। जिससे यथासंभव द्रव्य व भावहिंसा न हो ।। १२९ ।। भावार्थ-रात्रिको भोजन करना धार्मिक दृष्टि से तो वर्जनीय है ही क्योंकि उससे द्रव्य व भाव हिंसा दोनों होती हैं। देखो जब अत्यधिक राग होता है तभी तो रात्रिको बनाया व खाया जाता है, जिससे बाल असंख्यात जीवोंका घात ( मरण ) होता है तथा भीतर प्रचूर या अधिक राग होनेसे भाव प्राणोंका विनाश होता है। इसके सिवाय लोकनिन्दा भी होती है, धर्मशास्त्रकी आज्ञाका उल्लंघन ( अनादर भी होता है, जिससे धर्म में अश्रद्धा जाहिर होती है। एवं लोकिक जोवनमें हानि होतो है... वैद्यकशास्त्र कभी रात्रिको भोजन करनेकी आज्ञा नहीं देता---वह कमसे कम सोनेसे ४ घंटा पहिले भोजन करनेकी आज्ञा देता है जिससे स्वास्थ्य अच्छा रहे, बीमारी आदि न हो, हजम ( पाचन ) होने में कष्ट न हो इत्यादि-आगे और भी दोष व हानियाँ बतलाई जावेगी उनपर ध्यान रखना जरूरी है। इसके सिवाय दिनके भोजनसे रात्रिके भोजनमें सूर्य प्रकाश ( स्वच्छ के समान प्रकाश न होनेसे गिरने मरनेवाले जोष स्पष्ट दिखाई नहीं पड़ते, इत्यादि अधिक हानि होती है। फलतः हिंसाके आयतन होनेसे परिग्रह व रात्रि भोजन दोनों ही वर्जनीय सिद्ध होते हैं, यह सारांश है । किम्बहुना-दोपकके प्रकाशका तक करना असंगत १. रात्रिको भोजन करना भी परिग्रहका सायी है क्योंकि उससे भी हिंसा होती है--समानता है। द्रव्य हिंसा व भावहिंसा दोनों होती है. ( रागसे भावहिंसा व भक्षण करनेसे द्रव्याहिंसा होती है) २. सोनेसे ४ घंटा पहिले भोजन करनेपर रात्रि हो ही नहीं पाती, दिन ही रहता है । जैसे ९ बजे सोने का समय हो तो ५ बजे भोजन दिनमें कर लेना पड़ेगा। १० बजे सो जाम सो ६ बजे भोजन करना पड़ेगा, दिन रहेगा। *WESTAN
SR No.090388
Book TitlePurusharthsiddhyupay
Original Sutra AuthorAmrutchandracharya
AuthorMunnalal Randheliya Varni
PublisherSwadhin Granthamala Sagar
Publication Year
Total Pages478
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size14 MB
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