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________________ wwMOHAMMAR उत्तम तपशुद्धि कहते हैं, तप रूपी अग्नि से जिनके कर्म सब सूख गए हैं, जिनके शरीर में हड्डी मात्र रह गई है जो कषाय रहित है तथापि जो शक्तिशाली है ऐसे शरीर से आसकर मुनि भी केवल मोक्ष प्राप्त करने के लिए अपने धैर्य के बल से बेला, तेला, पंद्रह दिन का उपवास, एक महीने का wal, होने का उपवास इस प्रकार अनेक उपवासों को धारण करते हैं। वे निस्पृह मुनिराज मोक्ष सुख प्राप्त करने के लिए पंद्रह दिन का व एक महीने का अथवा और भी अधिक उपवास कर के पारणा के दिन एक ग्रास या दो ग्रास आहार लेकर ही चले जाते हैं। वे धीर वीर मुनि मासोपवास आदि करके भी पारणा के भिक्षा लेने के लिए आज चौराहे पर आहार मिलेगा तो लूँगा नहीं तो नहीं अथवा पहले घर में आहार मिलेगा तो लूँगा नहीं तो नहीं इस प्रकार पड़गाहन की प्रतिज्ञा कर वृत्ति परिसंख्यान तप धारण करते हैं। अथवा वे मुनिराज पांचों इन्द्रियों के सुख नष्ट करने के लिए पारणा के दिन छह रसों का त्याग कर अथवा पांचों रसों का त्याग कर आहार लेते हैं अथवा गर्म जल से धोये गये अन्न को ही वे ग्रहण करते हैं। वे निर्भय मुनिराज स्त्रियों के संसर्ग से अत्यन्त दूर तथा हड्डी मांस या क्रूर जीवों से भरे हुए श्मशान में या भयानक वन में अर्थात् एकांत स्थान में ही शयन या आसन ग्रहण करते हैं। वे मुनिराज जिसकी ठण्ड से वृक्ष भी जल जाते हैं ऐसी ठण्डी के दिनों में रात के समय आठों दिशा रूपी वस्त्रों को धारण कर तथा ध्यान रूपी गर्मी से तपते हुए चौराहे पर खड़े होकर शीत बाधा को जीतते हैं। गर्मी के क्लेश को सहन करने में अत्यन्त धीर-बीर वे मुनिराज गर्मी के दिनों में सूर्य की किरणों से तप्तायमान ऐसे ऊंचे पर्वतों की शिला पर सूर्य के सामने खड़े होते हैं। वे मुनिराज वर्षा के दिनों में जहाँ पर बहुत देर तक पानी की बूंदे झरती रहती है और जिसकी जड़ में अनेक सादिक जीव लिपटे रहते हैं ऐसे वृक्षों के नीचे खड़े रहते हैं तथा वहां पर अपनी शक्ति के अनुसार उपद्रवों को सहन करते रहते हैं। इस प्रकार तीनों ऋतुओं में योग धारण करने वाले मुनिराज ऋतुओं से उत्पन्न हुए अनेक ' उपद्रवों को सहन करते हैं क्षुधा तृष्णा शीत उष्ण की बाधा सहन करते हैं सांप बिच्छुओं के काटने का परिषह सहन करते हैं देव मनुष्य तिथंच और अचेतनों से LA प्रायश्चित्त विधान - ५२ ORISAR ainindisimanditainmentwwwdesivingindianisaniliunisunSARDaindioindianRR THEIR.AL. I Lxzs.in andiind
SR No.090385
Book TitlePrayaschitt Vidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAadisagar Aankalikar, Vishnukumar Chaudhari
PublisherAadisagar Aakanlinkar Vidyalaya
Publication Year
Total Pages140
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, & Vidhi
File Size3 MB
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