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________________ NATube-doASTHA हैं मौन धारण करने बाले वे मुनिराज स्त्री कथा, अर्थ कथा, भोजन तथा, राजकथा, चोर कथा या मिथ्या कथायें कभी नहीं कहते हैं इसी प्रकार खेद कर्वट, देश पर्वत, नगर वादि आदि की कथाएँ भी कभी नहीं कहते हैं। तथा वे मुनिराज नट सुभट मल्ल इन्द्रजालिया जुआ खेलने वाले कुशील सेवन करने वाले दुष्ट म्लेला ; शत्रु रुगललोर मिशहादष्टि कलिंगी राणी द्वेषी मोही और दुखी जीवों की व्यर्थ की विकथाएँ कभी नहीं करते हैं। वे चतुर मुनि पाप की खानि ऐसी और भी अनेक प्रकार की विकथाएँ कभी नहीं करते हैं तथा न कभी ऐसी अशुभ विकथाओं को सुनते हैं। जो विकथा कहने वाले लोग अपना और दूसरों को जन्म व्यर्थ ही खोते हैं ऐसे मूर्ख लोगों की संगति से बुद्धिमान मुनिराज एक क्षण भर भी नहीं चाहते हैं। वे मुनिराज शरीर में विकार उत्पन्न करने वाले वचन कभी नहीं कहते साधुओं के द्वारा निंदनीय ऐसी बकवास कभी नहीं करते और हंसी को उत्पन्न करने वाले दुर्वचन कभी नहीं कहते हैं। विकार रहित विचारशील और मोक्ष लक्ष्मी को सिद्ध करने में सदा तत्पर ऐसे वे मुनिराज मोक्ष प्राप्त करने के लिए जुद्धिमानों को सदा धर्मोपदेश ही देते हैं जो धर्म संबंधी श्रेष्ठ कथा भगवान जिनेन्द्र देव से प्रगट हुई है जिसमें तीर्थकर ऐसे महापुरुषों का कथन है जो संवेग को उत्पन्न करने वाली है सारभूत है तत्वों को स्वरूप को कहने वाली है मोक्ष देने वाली है रागद्वेष रुपी शत्रु को नाश करने वाली है ऐसी श्रेष्ठ कथाही वे चतुर मुनिराज सज्जनों के लिए कहते हैं। जो सुनिराज समर्थशाली हैं अपने मन को सदा मुनियों की भावना में लगायेरहते है जो अपने आत्मध्यान में सदा तत्पर रहते हैं और तत्वों के चितवन करने का ही जिनके सदा अवलंबन रहता है इस प्रकार के और अनेक गुणों को जो धारण करते हैं तथा गूंगे के समान मौनव्रत धारण कर ही अपनी प्रवृत्ति रखते हैं ऐसे मुनियों के उत्तम वाक्य शुद्धि कही जाती है। ___ महायोग व्रत और गुप्ति समिति आदि से शोभित रहने वाले और प्रभाद रहित जो मुनि अपनी शक्ति के अनुसार अशुभ कर्म रूप शत्रुओं की संतान को भी जड़मूल से उखाड़ देने वाले तथा मोक्ष के कारण भगवान जिनेन्द्र के कहे हुए और सारभूत ऐसे बारह प्रकार के तपश्चरण को ज्ञानपूर्वक धारण करते हैं, उसको ariL..... ..... प्रायश्चित्त विधान +५१ u. s . . ux
SR No.090385
Book TitlePrayaschitt Vidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAadisagar Aankalikar, Vishnukumar Chaudhari
PublisherAadisagar Aakanlinkar Vidyalaya
Publication Year
Total Pages140
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, & Vidhi
File Size3 MB
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