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अक्षत
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जाय अथवा अन्न, जल का त्याग कर मर जाय अथवा पति के मरने पर कोई विधवा स्त्री अग्नि में प्रवेश कर मर जाय अथवा खरीद बिक्री आदि व्यापार के सम्बन्ध से किसी मनुष्य का घात हो जाय अथवा घर में अग्नि लगने पर कोई मनुष्य व पशु मर जाय, अपना कुआ खोदने में कोई मर जाय, अपने तालाब में पड़ कर कोई मर जाय जो अपना सेवक द्रव्य कमाने गया हो और मार्ग में चोर आदि के द्वारा वह मारा जाय अथवा अपने मकान की दीवाल गिर जाने से कोई मर जाय तो जिस मनुष्य को कारण मानकर वह मरा है अथवा जिसके कुआ, तालाब, दीवाल आदि से वह मरा है उसको पांच उपवास करने चाहिए, बावन एकाशन करना चाहिए, गौदान, संघ पूजा, दयादान, अभिषेक, पुष्प, आदि पूजा द्रव्य को जिन भंडार में देना और णमोकार मंत्र का जप यथायोग्य रीति से करना चाहिए। तब वह शुद्ध और पंक्ति योग्य होता है। सो ही लिखा है. यस्योपरि मृतो जीवो विषादिभक्षणादिना । क्षुधादि नाथ वा भृत्ये गृहदाने नरः पशुः ॥ कूपादिखनने वापि स्वकीयेत्र तडामके । स्वद्रव्योपार्जिते भृत्ये मार्गे चौरेण मारिते ॥ कुडयादितने चैव रंडा वह्नौ प्रवेश ने । जीवघातो मनुष्येण संसर्गे क्रय-विक्रये ॥ प्रोषधाः पंच गोदानमेक भक्ताद्विपंचाशत् । संघ पूजादयादानं पुष्पं चैव जपादिकम् ॥ यदि अपने पानी आदि के मिट्टी के बर्तन अपनी जाति के बिना अन्य जाति के मनुष्य से स्पर्श हो जाय तो उतार देना चाहिए। यदि तांबे, पीतल, लोहे के बर्तन दूसरी जाति वाले से छू जाय तो राख से (भस्म से ) माँज कर शुद्ध कर लेना चाहिए। यदि कांसे के बर्तन अन्य जाति वाले से छू जाय तो अग्नि से गर्म कर शुद्ध करना चाहिए। काठ के बर्तन कठवा, कठौती, कुंडी आदि हो और चौका में काम आ जाने पर दूसरों के द्वारा छूये जाय तो वे शुद्ध नहीं हो सकते। यदि प्रायश्चित विधान १८
ICHI-ION