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कांसे, तांबे, लोहे के बर्तन में अपनी जाति के सिवाय अन्य जाति वाला भोजन कर ले तो अग्नि से शुद्ध कर लेना चाहिए। जिस बर्तन में मद्य, मांस, विष्ठा, मूत्र, निष्ठीवन (वमन) खकार, कफ, मधु आदि अपवित्र पदार्थों का संसर्ग हो जाय तो उस पात्र को उत्तम श्रावक त्याग कर देते हैं । फिर काम में नहीं लेते। चलनी, वस्त्र से मढ़ा सूप, मूसल, चक्की आदि रसोई के उपकरण अपनी जाति के बिना अन्य जाति के लोगों से स्पर्श हो जाने पर बिना धोये हुए शुद्ध नहीं होते। उनको धोकर शुद्ध कर लेना चाहिए।
यदि स्वप्न में किसी अन्नादिक वस्तु का भक्षण किया जाय तो उस वस्तु का तीन दिन तक के लिए त्याग कर देना चाहिए। यदि किसी ने स्वप्न में मद्य, मांस का भक्षण किया हो तो दो उपवास करना चाहिए। यदि नींद में परवश होकर ब्रह्मचर्य का भंग हो जाय तो एक हजार णमोकार मंत्र का जप करना चाहिए और तीन एकाशन करना चाहिए। यदि स्वप्न में अपनी माता, भगिनी, पुत्री आदि का संसर्ग हो जाय तो दो उपवास और एक हजार मंत्र का जप करना चाहिए।
यदि कोई मिथ्यादृष्टि के घर एक रात्रि रहकर भोजन कर ले अथवा एक बार शूद्र के घर भोजन कर ले तो उसको पांच उपवास और दो हजार णमोकार मंत्र का जप करना चाहिए। यदि शूद्र के घर अपनी रसोई भी बनाकर खावे तो भी दोष ही है । इस प्रकार यह थोड़ी सी प्रायश्चित्त की विधि बतलाई है । विशेष जानने की इच्छा हो तो अन्य अनेक जैन-शास्त्रों से जान लेना चाहिए। सो ही लिखा है -
स्वतौन्यैः स्पर्शितं भांडं मृन्मयं चेत्परित्यजेत्। ताम्रारलोहभांडं चेच्छुच्यते शुद्ध भस्मना । बहिना काश्यभाडं चेत्काष्ठ भांडं न शुद्धीत । काश्यं तानं च लोहं चेदन्यभुक्तेनिना वरम् ।। यद्धाजने सुरामांसं विभूत्रश्लेष्म माक्षिकः।
क्षिप्तं ग्राह्यं न तद्धांडं तत्त्याज्यं श्रावकोत्तमैः॥ trrrrrr
rrrrrLLAry प्रायश्चित विधान - ११