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वह पंक्ति के योग्य होता है। सो ही लिखा है -
घातिते तृणभुक्जीवे प्रोषधा अष्टविंशतिः ।
पात्रदानं च गोदानं पुष्पाक्षतादि स्वशक्तितः॥ यदि जलचर, थलचर व किसी पक्षी का किसी से घात हो जाय अथवा चूहा, बिल्ली, कुत्ता आदि दौत से हत्या करने वाले जीव का किसी से घात हो जाय तो उस पुरुष को बारह उपवास, सोलह एकाशन, सोलह अभिषेक, गोदान, पात्रदान करना चाहिए तथा अपनी शक्ति के अनुसार गुजोबासा सो का चाहिए तब वह शुद्ध और पंक्ति योग्य होता है । सो ही लिखा है -
जलस्थलचराणां तु पक्षिणां घातकः पुमान् । गृहे मूषकमाजरिश्वादीनां दन्तदोषिणाम् ।। प्रोषधा द्वादशकालाभिषेकाचानुषोडश | .
गोदानं पात्रदानं तु यथाशक्ति गुरोर्मुखात् ॥ यदि किसों से गाय, घोड़ा, भैंस, बकरी आदि जीवों की हिसा हो जाय तो उस पातकी को तेइस उपवास, एक सौ एक एकाशन तथा अपनी शक्ति के अनुसार पात्र दान, तीर्थयात्रा आदि करना चाहिए। तब वह शुद्ध और पंक्ति के योग्य होता है सो ही लिखा है --
गोऽश्वमहिषीछागीनां वर्धक त्रिविंशतिः ।
प्रोषधा एकभक्तानां शतं दानं तु शक्तितः ।। यदि किसी से किसी मनुष्य की हिंसा हो जाय तो उसको तीन सौ उपवास, गोदान, पात्रदान आदि पहले कही हुई सब विधि और तीर्थयात्रा आदि करनी चाहिए । तब वह शुद्ध और पंक्ति के योग्य होता है । सो ही लिखा है -
मनुष्यघातिनः प्रोक्ता उपवासाः शतत्रयम् ।
गोदानं पात्रदानं तु तीर्थयात्रा स्वशक्तितः।। यदि कोई पुरुष किसी पुरुष के कारण से विष खाकर व और किसी तरह मर
प्रायश्चित्त विधान - १७