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________________ ३७६ granPIRPIPn. प्रवचनसार-सप्तदशांगी टीका एवं पणमिय सिद्ध जिगावरवसहे पुणो पुणो समणे । पडिवजदु सामण्णं जदि इच्छदि दुक्खपरिमोक्खं ॥२०१॥ यो प्रणाम करि सिद्धों, जिनपर वृषभों पुनीत श्रमणोंको । धामण्य प्राप्त कर लो, यदि चाहो दुःखसे मुक्ती ॥ २०१ ।। एवं प्रणम्य सिद्धान जिनवरवृषभान पुनः पुनः श्रमणान् । प्रतिपद्यतां श्रामण्यं यदीच्छति दुःखपरिमोक्षम् । यथा ममात्मना दुःखमोक्षार्थिना, 'किच्चा प्ररहतारण' इति "तेसि" इति अर्हत्सिद्धा. चार्योपाध्याय साधूनां प्रणतिवन्दनात्मकन मस्कारपुरःसरं विशुद्धदर्शनज्ञानप्रधान साम्यनाम श्राम. नामसंज-एवं सिद्ध जिणवरवसह पुणो समण्ड सामा जदि दुक्खपरिमोक्ख । धातुसंज्ञ-प्र नम नम्रीभावे, पडि पज गती 1 प्रातिपदिक-एवं सिद्ध जिनवरवृषभ पुनर थमण श्रामण्य यदि दुःखरिमोक्ष । अब इस अधिकारको गाथा प्रारम्भ करते है...- [एवं] यो पूर्वोक्त तीन माधादोंके अनुसार [पुनः पुनः] बारंबार [सिद्धान्] सिद्धोंको, [जिनवरदृषभान] अर्हन्तोको तथा [धमरणान् ] श्रमणोंको [प्रणम्यं ] प्रणाम करके [यदि दुःखपरिमोक्षम् इच्छति यदि दुःखोंसे छुटकारा पाने की. इच्छा हो: तो [श्रामण्यं प्रतिपद्यताम्] श्रामण्यको अंगीकार करो । तात्पर्य-बार-बार सिद्धों व प्रहन्तोंको प्रणाम कर श्रामण्यको अपनानों । टोकार्थ---जैसे दुःखोंसे मुक्त होने के अर्थी मेरे प्रात्माने----"किच्चा प्ररहताण" इस प्रकार व "सिइस प्रकार प्रहन्तों, सिद्धों, प्राचार्यों, उपाध्यायों तथा साधुनोंको प्रणाम-- चंदनात्मक नमस्कारपूर्वक 'विशुद्धदर्शनज्ञानप्रधान साम्य नामक श्रामण्यको जिसका इस ग्रन्य में कहे हुए दो अधिकारोंकी रचना द्वारा सुस्थितिपना हुआ है उसे स्वयं स्वीकार किया, उसो प्रकार दुमरोंका प्रात्मा भी, यदि दुखिोंसे मुक्त होनेका इच्छुक हो तो, उसे स्वीकार करे । उस श्रामण्यको अंगीकार करने का जो यथानुभूत मार्ग है उसके प्रणेता हम खड़े हुये हैं। प्रसङ्गविवरण-अनन्तरपूर्व गाथा तक प्रात्महित गवेषणापूर्वक पहिले ज्ञानतत्त्वका वर्णन करके ज्ञेयतत्त्वका वर्णन किया और अन्त में सहजात्मस्वरूपके अनुरूप अध्यात्म प्राचरण के कर्तव्यका संकेत किया । अब इस गाथामें अध्यात्म प्राचरणको सिद्धि के लिये उसके अविरुद्ध माचरण करनेका अादेश किया है । तथ्यप्रकाश-(१) प्रात्महितार्थी पुरुष जो प्रात्मा वीतराग सर्वज्ञ हैं उनको बार बार भावनमस्कार व द्रव्यनमस्कार करता है । (२) प्रात्महितार्थी पुरुष जो भव्यात्मा वीतसग सर्वज्ञ देवके द्वारा उपदिष्ट मोक्षमार्गमें लगकर शुद्धात्मा होनेके प्रयत्नमें हैं उनको द्रव्यनमस्कार व भावनमस्कार करता है। (३) दुःखमोक्षार्थी, भव्यात्मा पञ्चगुरुनमस्कारपूर्वक
SR No.090384
Book TitlePravachansara Saptadashangi Tika
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages528
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Sermon
File Size22 MB
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