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________________ ३६६ प्रवचनसार----सप्तदशाङ्गी टोका प्रथोपलन्धशुद्धात्मा सकलज्ञानी कि ध्यायतोति प्रश्नमासूत्रयति--- णिहदघणघादिकम्मो पञ्चक्खं सब्वभावतच्चाह । गोयंतगदो समणो झादि कम असंदेहो ॥१६७॥ निहतघनघातिकर्मा, प्रत्यक्षहि सर्व तत्वका ज्ञाता। ज्ञेयान्तगत प्रसंशय, प्रभुवर क्या अर्थ ध्यान करे ॥१७॥ निहतघनघातिकर्मा प्रत्यक्षं सर्वभावतत्त्वज्ञ: 1 ज्ञेयान्तगतः श्रमणो ध्यायति कमर्थमसंदेहः ।। १६७ ।। लोको हि मोहसद्भावे ज्ञानशक्तिप्रतिबन्ध कसद्भावे च सतृष्णत्वादप्रत्यक्षार्थतवानवच्छिनविषयत्वाभ्यां चाभिलषितं जिज्ञासितं संदिग्धं चार्थं ध्यायन् दृष्टः, भगवान सर्वज्ञस्तु निहतधनधातिकमंतया मोहाभावे ज्ञानशक्तिप्रतिबन्ध काभावे च निरस्ततृष्णत्वात्प्रत्यक्षमर्वभावतत्त्व नामसंज्ञ--णिहृदयणघादिकम्म पच्चक्ख सब भावतरचण्हु रण्यंतगद समण के अट्ट असंदेह ! धातुसंज्ञझा ध्याने । प्रातिपदिक..... निधनधातिकमन् प्रत्यक्षं सर्वभावतस्वज्ञ ज्ञेयान्सगत श्रमण किम् अर्थ असंदेह । मूलधातु--ध्ये चिन्तायो । उभयपदविवरण-णिदधन घादिकम्मा मिहतधनधातिकर्मा सवभावतवह सर्वभावतत्त्वज्ञः रयंदगदो ज्ञेयान्तगत: समणो श्रमणः असदेहो असन्देहः-प्रथमा एक वचन । पच्चख प्रत्यक्ष-अन्तर्गतक्रियाविशेषण प्रत्यक्षं यथा स्यात्तथा अव्यय पश्चात् । कं अट्ट अर्थ-द्वितीया एक० । झादि ध्यायति-वर्तमान अन्य पुरुष एकवचन क्रिया । निरुक्ति- अन्तनं अन्त: अति बन्धने भ्वादि, ज्ञातुं प्रसङ्गविवरण..- अनन्तरपूर्व गाथामें बताया गया था कि निमेहि विषयविरक्त भध्यास्मा स्वभावमें समवस्थित होता हुअा शुद्धात्माका ध्याता है। अब इस गाथामें प्रश्न अथवा प्राक्षेप किया गया है कि घातिकमरहित सर्वज्ञाता श्रमण किस पदार्थको ध्याते हैं ? तथ्यप्रकाश---१-- मोहभाव होनेपर तृष्णा जगती है । २-तृष्णा जगनेपर इष्ट अर्थको अभिलाषा होती हैं। ३-- इष्ट अर्थका अभिलाषी अभिलषित अर्थका ध्यान किया करता है। ४- ज्ञानशक्तिके प्रतिबन्धक ज्ञानावरणकर्मका विपाक होनेसे बहुतसे पदार्थोको यह जीव जानता नहीं है । ५- सर्व पदार्थोंका ज्ञान न होने से कुछ ज्ञात व बहुधा अज्ञात पदार्थको स्पष्ट जाननेकी इच्छा होती है । ६- जिज्ञासु जीव जिज्ञासित अर्थका ध्यान किया करता है । ७A कतिपय सर्वसाधारण अंश ज्ञात होनेपर तथा शेष असाधारणांश अज्ञात होनेपर संदेह होता है। 4- संदेह रखने वाला जीव संदिग्ध पदार्थका ध्यान किया करता है । - मोहनीय कर्म के नाश होनेसे जिस अात्माके मूलतः समस्त मोह नष्ट हो गया वह तृष्णा शून्य परमात्मा क्या प्रभिलाषा करता है ? १०- जिस प्रात्माके ज्ञान शक्तिका प्रतिबन्धक ज्ञानावरण समस्त नष्ट हो गया वह सर्वज्ञाता परमात्मा क्या जिज्ञासा करता है ? क्या सन्देह करता है ? ११- जब परमात्माके अभिलाषा नहीं, जिज्ञासा नहीं, सन्देह नहीं तब वह क्या ध्याता है ? १२-पर htra.comR R ORomwcommamtamanna ।
SR No.090384
Book TitlePravachansara Saptadashangi Tika
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages528
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Sermon
File Size22 MB
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