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________________ mussiasanmmminkaariमा याजाITMRIMixmadambarama uvaMausamaanwoman 2688 प्रवचनसार-सप्तदशांगी टीका ३२५ यस्येति द्रव्य कर्मासंपूक्तत्वस्य । न लिंगेस्य इन्द्रियेभ्यो ग्रहरणं विषयाणामपभोगो यस्येति विषयोंपभोवतृत्वाभावस्य । न लिंगात्मनो वेन्द्रियादिलक्षणाद्ग्रहणं जीवस्य धारणं यस्येति शुक्रातवानुविधायित्वाभावस्य । न लिंगस्य मेहनाकारस्य ग्रहणं यस्यति लौकिकसाधनमात्रत्वाभावस्य । न लिगेनामेहनाकारण्य ग्रहणं लोकव्याप्तिर्यस्थति कुक प्रसिद्धसाधनाकारलोकव्याप्तित्वाभावस्य । न लिंगानां स्त्रोपुन्नपुंसकवेदानां ग्रहणं यस्येति स्त्रीपुन्नपुसकद्रव्यभावाभावस्य । न लिंगाना अव्वत अव्यक्तं चेदणामुणं चेतनागुणं असद अशब्दं अलिंगहा अलिङ्गनहण जीव अणिसिंठाण अमिदिष्टसंस्थान-द्वितीया एकवचन । जाण जानीहि आज्ञार्थे मध्यम पुरुष एकवचन क्रिया। निरुक्तिइस प्रकार 'आत्मा अनुमाता मात्र नहीं है, इस अर्थको जानकारी होती है। जिसका लिंगसे नही किन्तु स्वभावके द्वारा ग्रहण होता है वह अलिंगग्रहा है; इस प्रकार 'श्रात्मा प्रत्यक्ष जाता है। इस अर्थको जानकारी होती है। (७) लिंग द्वारा अर्थात् उपयोगनामक लक्षण द्वारा जिसका ग्रहण नहीं है अर्थात् ज्ञेय पदार्थोंका पालम्बन नहीं है, वह अलिंगग्रहण है, इस प्रकार प्रात्माके बाह्य पदार्थों का पालम्बन वाला ज्ञान नहीं है', इस अर्थको जानकारी होती है । YEL लिंगका अर्थात् उपयोग नामक लक्षणका ग्रहण अर्थात् स्वयं कहीं बाहरसे लाया जाना नहीं है जिसका सो अलिंगग्रहरण है; इस प्रकार 'प्रात्माके अनाहार्य ज्ञानपनेकी जानकारी होती ME | (e) लिंगका अर्थात् उपयोग नामक लक्षणका ग्रहण अर्थात् परसे हरण नहीं हो सकता जिसका सो अलिंगग्रहण है। इस प्रकार 'प्रात्माका ज्ञान हरण नहीं किया जा सकता', ऐसे की जानकारी होती है। (१०) लिंगमें अर्थात् उपयोग नामक लक्षण में ग्रहण अर्थात सूर्य को भांति उपराग नहीं है जिसके वह अलिंगग्रहण है। इस प्रकार 'आत्मा शुद्धोपयोगस्वभावी इस अर्थकी जानकारी होती है। (११) लिंगसे अर्थात् उपयोग नामक लक्षणसे ग्रहण प्रति पौद्गलिक कर्मका ग्रहण जिसके नहीं है, वह अलिंगनहरण है; इस प्रकार 'प्रात्मा द्रव्यकसे असंपृक्त है। इस अर्थ की जानकारी होती है । (१२) लिंगोंके द्वारा अर्थात् इन्द्रियोंके भारा ग्रहमा अर्थात् विषयोंका उपभोग नहीं है जिसके सो अलिंगग्रहण है; इस प्रकार 'श्रात्मा विषयोंका उपभोक्ता नहीं है' इस अर्थको जानकारी होती है । (१३) लिङ्गात्मक इन्द्रियादि सके द्वारा ग्रहण अर्थात् जीवत्वको धारण कर रखना जिसके नहीं है वह अलिंगग्रहण है; इस प्रकार 'मात्मा शुक्र और रजके अनुसार होने वाला नहीं है' इस अर्थको जानकारी होती ||१४) लिंगका अर्थात् मेहनाकारका ग्रहग जिसके नहीं है सो अलिगग्रहण है; इस प्रकार मात्मा लौकिकसाधनमात्र नहीं है, इस अर्थकी जानकारी होती है । (१५) लिंगके द्वारा अर्थात अमेहनाकारके द्वारा जिसका ग्रहण अर्थात् लोकमें व्यापकत्व नहीं है सो अलिंगग्रहण FO
SR No.090384
Book TitlePravachansara Saptadashangi Tika
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages528
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Sermon
File Size22 MB
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