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________________ २५० सहजानन्यशास्त्रमालाया सोम्नोऽचलितत्वादाकाशस्य, विरुद्ध कार्यहेतुत्वाद्धर्मस्य चासंभवदधर्ममधिगमयति । तथा श्रशेष शेषद्रव्याणां प्रतिपर्यायसमयवृत्तिहेतुत्वं कारणान्तरसाध्यत्वात्समय विशिष्टाया वृत्तेः स्वतस्तेषान संभवत्कालमधिगमयति । तथा चैतन्यपरिणामश्चेतनत्वादेव शेषद्रव्याणामसंभवन् जीवमधिगमयति । एवं गुणविशेषाद्द्रव्यविशेषोऽधिगन्तव्यः ।। १३३-१३४।। कालस्य-पृष्ठी एकवचन । अवगाहो अवगाहः गमहेश गमनहेतुत्वं गुणो गुणः ठाणकारणदा स्थानकार ता बना बर्तना गुण गुणः उवओोगों उपयोगः दु तु पुरे पुनः ति इति हि-अव्यय पण आत्माएकवचन | भगिदो भणितः प्रथमा एकवचन कृदन्त क्रिया । पेमा शेयाः प्रथमा बहुवचन कृदन्त क्रिया | संवाद संक्षेपात्-पंचमी एकवचन । गुणा गुणाः- प्रथमा बहुवचन मुत्तिप्पहीणाणं मूर्तिहीनाना-ठी बहुवचन । निरुक्ति - आकाशन्ते सर्वाणि द्रव्याणि यत्र स आकाशः अवगाहनं अवगाह, हिमोतीति हेतु: संक्षेपनं संक्षेपः । समास - - गमनस्य हेतुः गमनहेतुः तस्य भावः गमनहेतुत्वम् स्थानस्य कारणं स्थानकारणं तस्य भावः स्थानकारणता ।। १३३- १३४ ।। 1 का हेतुत्व अधर्मद्रव्यको बतलाता है; क्योंकि काल और पुद्गल अप्रदेशी हैं, इसलिये उनके वह संभव नहीं है; जो समुद्घातको छोड़कर लोकके प्रसंख्यातवें भाग मात्र है, इसलिये उसके वह संभव नहीं है, लोक और अलोककी सीमा अचलित होनेसे प्रकाशके वह संभव नहीं है, और विरुद्ध कार्यका हेतु होनेसे धर्मके वह संभव नहीं है । इसी प्रकार शेष समस्त द्रव्योंके। प्रत्येक पर्याय में समयवृत्तिका हेतुत्व कालको बतलाता है, क्योंकि उनके समयविशिष्टवृत्ति कारणान्तरसे साध्य होनेसे स्वतः उनके समयवृत्तिहेतुत्व संभावित नहीं है । इसी प्रकार चैतन्य परिणाम जीवको बतलाता है, क्योंकि वह चेतन है, इसलिये शेष द्रव्योंके वह संभव नहीं है । इस प्रकार गुण विशेषसे द्रव्यविशेष जानना चाहिये । प्रसंगविवरण - प्रनन्तरपूर्व गाथा में पुद्गलद्रव्य के गुणों आदिका कथन किया था । इन दो गाथावों में अमूर्त द्रव्योंके गुणोंको (लक्षणोंको) बताया गया है । तथ्य प्रकाश--. १- सर्वद्रव्योंके साधारण अवगाहका हेतुपना होना आकाश द्रव्यका ! असाधारण लिङ्ग है । २- गतिक्रियापरिणत सर्व जीव पुद्गलोंके गमन में निमित्तपना होना: धर्मद्रव्यका असाधारण लिङ्ग है । ३-स्थितिरूप परिणमन करने वाले जीव पुद्गलोके ठहरने में निमित्तपना होना अधर्मद्रव्यका असाधारण लिङ्ग है । ४ - सर्व द्रव्योंकी प्रतिपर्याय में समय समयको परिषतिका निमित्तपना होना कालद्रव्यका असाधारण लिङ्ग है । ५ चैतन्यका परि नाम अर्थात् उपयोग जीवद्रव्यका असाधारण लिङ्ग है । ६ - साधारण लिङ्गसे ही द्रव्यविशेष का परिचय होता है । सिद्धान्त - पदार्थ अपने अपने द्रव्य, क्षेत्र, काल, भावसे ही सत् हैं ।
SR No.090384
Book TitlePravachansara Saptadashangi Tika
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages528
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Sermon
File Size22 MB
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