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________________ प्रवननसार-राप्तवाशांनी टीका २५७ विशेषगुणों हि युगपत्सर्थ द्रव्याणां साधारणावगाहहेतुत्वमाकाशस्य, सकृत्सर्वेषां गमनपरिणामिनो जीवपदालानां गमन तत्वं धर्मस्य, सकृत्सर्वेषां स्थानपरिणामिना जीवपुद्गलानां स्थातहतुत्वमधर्मग्य, अशेषशेषद्रव्याणां प्रतिपर्यायं समयवृत्तिहेतृत्व कालस्य, चैतन्यपरिणामो जीवस्य । एवममूर्तानां विशेष गृगासंक्षेपाधिगमे लिङ्गम् । तत्रैककालमेव सकलद्व्यसाधारसाबगाइसंपादनमसर्वमतत्वादेव शेषद्रव्याणामसंभवदाकाशमधिगमयति । तथैकवारमेव गतिपरिणउसमस्तजीवपुद्गलानामालोकाद्गमनहेतृत्व मप्रदेशत्वाकालपुद्गलयोः समुद्धातादन्यत्र लोकासध्ययभागमात्रत्वाञ्जीवस्य लोकालोकसीम्नोऽचलितत्वादाकाशस्य विरुद्धकार्य हेतृत्वादधर्भस्यामभवद्धर्ममधिगमयति । तथैकवार मेत्र स्थिति रिमात समस्तजोवपुद्गलानामालोकात्स्थान हेतु. त्व प्रदेशात्वाकालपुद्गलयोः, समुद्घा तादन्यत्र लोकासंख्येय भागमात्रत्वामीवस्य, लोकालोक नामसंझ आगास अवगाह धम्मदव्य गमणहेट्टत्त धम्मेदरदन्च दु गुण पुणो ठाणकारणदा काल घट्टणा पुणो उवओगों त्ति अप भणिद गणेय सम्वेव गुण हि मुत्तिप्पहीण । धातुसंज्ञ--भण कथने, ना अवोधरे 1 प्रातिपदिक--आकाश अवगाह धर्मद्रध्य गमनहेतुत्व धर्मेतरद्रव्य तु गुण पुनर् स्थानकारणता काल वर्तना सुपा उपयोग इति आत्मन् भणित ज्ञेय संक्षेप गणहि मूर्तिपहीण । मूलधातु-मण शब्दार्थः, ज्ञा अवरोध उभयपदविवरण---आगासस्स आकाशस्य धम्मदश्वस्य धर्मद्रव्यस्य धम्मेदरदश्वस्स धर्मतरद्रव्यस्य कालग तात्पर्य-प्रमूर्त द्रव्योंमें प्राकाशका अवगाह, धर्मद्रव्यका गतिहेतुत्व, अधर्मद्रव्धका स्थिति हेतुत्व, कालद्रव्यका परिवर्तना ।। टीकाथ.---युगपत् सर्वद्रव्योंके साधारण अवगाहका हेतृत्व प्राकाशका विशेष गुरण है । एक ही साथ सर्व गतिरूप परिणमन करने वाले जीव-पुद्गलोंके गमनका हेतुत्व वर्मका विशेष गरण है । एक ही साथ सर्व स्थितिरूप परिणमन करने वाले जीव पुद्गलोंके स्थिर होतका हेतुत्व अधर्मका विशेष गुण है। शेष समस्त द्रव्यों की प्रति-पर्याय में समय-समयकी परिणतिका निमित्तत्व कालका विशेष गुण है । चैतन्यपरिणाम जीवका विशेष गुण है । इस प्रकार प्रमूर्त द्रव्योंके विशेष गुणों का संक्षिप्त ज्ञान होने में चिन्ह, प्राप्त होते हैं; वहाँ एक ही कालमें समस्त द्रव्योंको साधारण अवगाहका संपादन अाकाशको बतलाता है; क्योंकि शेष ट्रव्यों के सर्वगत न होनेसे उनके वह संभव नहीं है । इसी प्रकार एक ही कालमें गतिपरिणत समस्त जीव पुद्गलोंके लोक तक गमनन] हेतुत्व धर्मद्रव्यको बतलाता है; क्योंकि काल और पगल अप्रदेशो हैं इसलिये उनके गमनहेतुत्व संभव नहीं है; जीव समुद्घातको छोड़कर लोक के प्रसंख्यातवें भाग मात्र है, इसलिये उसके वह संभव नहीं है, लोक अलोककी सोमा प्रच. लित होनेसे अाकाशके वह संभव नहीं है और विरुद्ध कार्यका हेतु होनेसे अधर्मके वह संभव नही है। इसी प्रकार एक हो कालमें स्थितिपरिणत समस्त जीव-पुद्गलोंके लोक तक स्थिति
SR No.090384
Book TitlePravachansara Saptadashangi Tika
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages528
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Sermon
File Size22 MB
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