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विषय
१ - ज्ञान तत्व प्रज्ञापन
| मंगलाचरणपूर्वक ग्रंथकर्ताको प्रतिज्ञा
६ वीतरागचारित्र उपादेय है और समचारि
हेय है
गाथा न०
७ चारिवका
म
रूप
वारिय और आत्माकी एकताका कथन
श्री प्रवचनसार की विषयानुक्रमणिका
ह अमाका शुभ अशुभ और शु
१० परिणाम वस्तुका स्वभाव है
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१३
१४
१५ शुद्ध
आत्मा शुद्ध और सुभादि भावोंका फल
योगफलकी प्रशंसा
प्रशंसा
पृष्ठ नं०
आत्माका स्वरूप
१६ शुद्धात्मस्वभाव प्राप्तिकी आरमाधीनता १० स्वयंभू आत्मा बुद्धात्मभाव प्राप्तिका अत्यंत अविनाशीपना और कचित् उत्पादव्यय श्रीव्यमुक्तता
२१ अतीन्द्रियज्ञानरूपपरिमित होनेसे केवली भगवान सब प्रत्यक्ष है
२३ आत्मा ज्ञानप्रमाण है और ज्ञान सर्वगत है २४ आत्माको प्रमाण न मानने में उपस्थित दोनों पक्षों में अनिष्ट दोष
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१९ स्वयंभू आत्माके इन्द्रियोंके बिना जान ओर श्रानन्द कैसे होता है ? इस संदेहका निराकरण ३३ २० तता के कारण शुद्धात्मा सुखदुःख की अत्यन्त असंभवता
शारीरिक
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२६ जानकी भांति आत्माका भी न्यायलिय सर्वगतत्व
२७ आमा और ज्ञान के एक-अभ्यत्व
२७ ज्ञान और जयके परस्पर गमनका निषेध २१ पदार्थोंमें अप्रवृत आत्माका पदार्थोंमें प्रवृत्त होना सिद्ध करनेवाला सक्तिचित्र्य
३० ज्ञान का प्रदायों ने स्पष्टीकरण ३१ पदार्थ ज्ञानमें वर्तते है इसका स्पष्टीकरण ३२ आत्माको पदार्थोंके साथ एक दूसरे में प्रवृत्ति होनेपर भी परका ग्रहणस्याग किये चिता तथा परस्य परियमित हुए बिना सबो देखते जानने से परस्पर अत्यन्त भिन्नता ३२ केवलज्ञानीको और श्रुतज्ञानीको अविशेषरूप दिखाकर विशेष आकाक्षा क्षोभका
क्षय
३५ ज्ञानके श्रुताधिकृत भेदका दूरीकरण ३६ ज्ञान क्या है और क्या है, इसका
व्यक्तीकरण
३७ द्रव्योंकी अतीत और अनागत पर्यायें भी तात्कालिक पर्यायोंकी भांति ज्ञानमें बर्तती
अविद्यमान पर्यायोंकी कचित् विद्यमानता ३९ अविद्यमान पर्यायोंकी जानका
दृढीकरण
४० इन्द्रियज्ञानके ही नष्ट और अनुत्पन्न के जानने की अशक्यता
४१ अतीन्द्रिय ज्ञानके लिये सर्वविध योंकी
संभवतः
४२ परिणमस्वरूप किया ज्ञानमेंसे नहीं
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