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प्रवचन
सारोद्धारे सटीके
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वृत्तिः डायजेस्ट या मधुसंचय
वृत्तिकार महर्षि जहां सरल एवं विशद विवेचन की प्रावश्यकता होती है वहां, ऐसा विवेचन प्राचीन ग्रन्थों में से मिल जाने पर अक्षरश: Nute कर लेते है। यह बात इस बात को ध्वनित करती है कि प्रस्तुत कृति एक मधु कृति है. डायजेस्ट, जहां सम्पादक श्रेष्ठता को चोतरह से गृहित करता है ।"
विशेष रूप से मां के स्तनपान की उपमा जिसको दी गई है, ऐसी मलयगिरिसूरि महाराज की आगमीय वृत्तियों में से बहुत चयन किया है। ऐसे स्थलों पर हमने टिपण में निर्देश दिया है। प्रवचन सारोद्धार के साथ लघु प्रवचन सारोकार परिशिष्ट २ में हमने श्री चन्द्रसूरि महाराज निर्मित लघु प्रवचनसारोद्वार नाम से प्रसिद्ध प्रत्थ- जिसमें प्रत्याख्यान सम्बन्धी व प्रशनादि एवं प्रणाहारी चीजों की चर्चा की गई है वे दिया गया है।
ग्रन्थकार श्री चन्द्रसूरि महाराज का परिचय हीरालाल कापडिया ने इस तरह दिया है (जैन साहित्य का वृहद् इतिहास मा. ४, पृ. १७४ )
"श्री चन्द्रसूरिजी मलधारी हेमचन्द्रसूरिजी के शिष्य थे। इन्होंने वि. सं. ११९३ में 'मुनिसुव्वय चरियम्' भी लिखा है। इसके अतिरिक्त 'खेलसमास' ('णमिउं वीरं' से प्रारंभ होनेवाला ) भी लिखा है। प्राप पूर्वावस्था में लाट देश के किसी राजा के संभवतः सिद्धराज जयसिंह के मन्त्री (मुद्राधिकारी ) थे ।
संखित्त संग्रहणी (संगणि रयण) मी शाप की कृति है। इस ग्रन्थ का अधिकतर पठन-पाठन हो रहा है। सम्पादन संशोधन के लिए हमने जिन वो हस्तप्रतों का उपयोग किया है, उनका परिचय इस तरह है । D यह प्रत डेलानो उपाश्रय (दोशीवाडानी पोल, श्रमदावाद) स्थित भंडार के डा. नं. १०८ क्रमांक ६४८२ को है। आकार: २०४५ सेन्टी मिटर
पत्र संख्या: १२
प्रति पत्र पंक्ति : ६
जिन
प्रत्रचन
का सार
प्रस्तावना
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