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जिन
प्रवचन. सारोद्धारे सटीके
कहीं कहीं टीकाकार स्वयं भी मतान्तर का निर्देश करते है, एके, प्रन्ये लिखकर। वहां एके अन्ये से कौन अभिप्रेत है, यह मी जहां जहां पता चला वहां प्रग्धोकनेस पूर्वक दिया है।
सम्पादनोपयुक्त हस्तप्रतः सम्पादनोपयुक्त इन हस्तप्रतों का विस्तृत विवरण प्रथम खण्ड के प्राक्कथन में विस्तृत रूप से दिया है। संक्षेप में वह इस तरह है।
जे-जेसलमेर को १२६५ वि. सं. में लिखित प्राचीन तारपत्रीय प्रत । . ता-पाटण, संघयो के पाडे की ताडपत्रीय प्रत ।
प्रवचन
का सार प्रस्तावना
द्वितीयः
सि-प्राचार्य श्रीमद् विजय सिदिसूरीश्वरजी शास्त्रसंग्रह की प्रत (जैन विद्याशाला, प्रमदाबाद), वि. सं.
१५५९ में लिखित । वि-उपर मुताबिक वि. सं. १५५३ में लिखित । त्रिः उपर मुताबिक दि सं. १६०८ में लिखित । पोश्रो जन पोरवाल पंच ज्ञान भडार, पाडोव (राजस्थान), वि. सं. १६४६ में लिखित । सं-सदेगो उपाश्रय, हाजा पटेल की पोल अमदावाद, वि. सं. १६६२ में लिखित । विप. (विषम पद) खंभात भण्डार, ताडपत्रीय । अनु १५६ ।
इस दूसरे खण्ड में, उक्त हतप्रतों से अतिरिक्त जिन प्रतों का उपयोग किया गया है, उनका परिचय इस तरह है।
ख खेमात स्थित शान्तिनाथ जैन ज्ञान भण्डार को ताडपत्रीय प्रत. १४":"। १३४ से २०६ द्वार तक । अन १५५ । R=राधनपुर (जनशाला ज्ञानभण्डार), १०॥४४"० २५, अनु.४४६, पत्र३७१, प्रति पंक्ति ५३ अक्षर ID m" उपर मुलाबिक डा० १४, अनु०२८२ ।
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