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________________ sponsoreememmmm प्रवचनमारोद्वारे २ वन्दन कद्वारे আম্বাব संहो गुरुणा भणिओ तस्थ गओ सुणइ देइ उल्लावं । एवं किंति च भणई न मस्थपणं तु वंदामि ॥१४॥ एवं तुमति भणई कोऽसि तुम मज्झ चोयणाए उ ?! एवं तज्जाएणं पडिभणणाऽऽसायणा सेहे ॥१४४॥ आनो ! किन गिलाणं पविजग्गसि पडि भनाइ किं न तुम । रायगए थ कहन कहं च एवं असुमणत्ते ॥१४॥ एवं नो सरसि तुमं एसो अत्यो न होइ एवंति । एवं कहमच्छिदिय सयमेव कहेउमारभइ ॥१४६।। तह परिसं चियभिदइ तह किंची भणइ जह न सा मिलइ । ताए अणहियाए गुरुभणि सवित्थर भणइ ।।१४७॥ सेज्ज संथारं वा गुरुणो संघहिऊण पाएहिं । स्वामेड न जो सेहो एसा आसायणा तस्स ॥१४॥ गुरुसेज्जसंधारगचिट्ठणनिसियणतुयहणेऽहऽवरा। गुरुउच्चसमासणचिट्ठणाइकरणेण दो परिमा ॥१४॥ 'पुरओ' इत्यादिगाथात्रयं १२९-१३०-१३१ एतद्गाथाव्याख्यागाथाश्च 'पुरओ अग्गपएसे' इत्यादिकाः, 'करणेण दो चरिमा' इत्यन्ता अष्टादश व्याख्यायन्ते, तत्र गुरोः पुरता अग्रतः कारणमन्तरेण
SR No.090382
Book TitlePravachansaroddhar Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandrasuri
PublisherBharatiya Prachyatattva Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages678
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Sermon
File Size21 MB
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