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________________ NMAm म रwwwdn0000000000wwwHARRRRAHaryanahiwaosamman पूर्वमव पानी का प्रवाह रोका नहीं जाता, उसी प्रकार प्रायु को निषेक भी नहीं ठहर सकते । अत: शोध आत्म कल्याण कर लेना ही बुद्धिमत्ता है । वस, अनेकों राजाओं के साथ जिनमुद्रा धारण कर घोर तप में संलग्न हो १६ कारण भावनाओं की आराधना कर पूण्य की कामठारूप तीर्थ र नामकर्म का बन्ध किया । स-समाधि मरण कर विजय विमान में ३३ सागर की आयु प्राप्त की। अर्थात् अहमिन्द्र हुमा । द्रव्य-भाव से शुक्ल लेश्या युत १ हाथ प्रमाण शुभ वर्ण, गंध, रस और स्पर्श वाला शरीर प्राप्त किया। सोलह महीने १५ दिन में उच्छवास लेता था, तेतीस हजार वर्ष में मानसिक अमृतमय पाहार करता था। लोकनाड़ी पर्यन्त रूपी द्रव्यों को अपने अवधिज्ञान से देखता था । प्रविचार से अनन्त गुरए अप्रविचार सुख का उपभोक्ता था । लोकनाड़ी को उखाड़ दे इतनी सामथ्र्य थी । क्षण-क्षरण कर ३३ सागर पूर्ण होने लगे । मात्र ६ माह शेष रह गये तब? गर्मावतरण भरत क्षेत्र का किरीट स्वरूप नगरी है, अयोध्या। तीर्थ प्रवर्तकों की जननी होने से यह धर्म की ध्वजा स्वरूप थी। धन-जन से सम्पन्न, अतिवृष्टि-अनावृष्टि का नाम भी नहीं था। समस्त मर-नारी शील, संयम, दया, क्षमा प्रादि गुणों से सम्पन्न सुन्दराकृति एवं सन्तोषी थे। यानक लो खोजने पर भी नहीं मिलते थे । इस पूण्य नगरी का अधिपति था जितशत्रु । राजा जिसशत्रु यथा नाम तथा गुरग थे। इनका कोई विरोधी शत्रु न था। इक्ष्वाकुवंश के तिलक, काश्यप मोत्री राजा ने अपनी गुण गरिमा से प्रजा को अनुरंजित कर दिया था । अर्थात् 'यथा राजा तथा प्रजा' की युक्ति अक्षरश: सार्थक थी। इनकी महारानी विजयसेना भी अप्रतिम रूपलावण्य के साथ समस्त नारी के गुणों से यूक्त थी । अनुकुल धर्मपत्नी के साथ प्रामोद-पूर्वक राजा का समय सुख पूर्वक व्यतीत होने लगा । धर्म, अर्थ, काम तीनों पुरुषार्थ होड़ लगाये दौड़ते थे, परन्तु कोई किसी का अवरोध नहीं करता था । मोक्ष पुरुषार्थ क्यों चप बैठता भला ? मानों, वह भी स्वर्गावतरण कर पाना चाहता था। जेष्ठ का मास था, अन्धेरा पक्ष । घोर तिमिर का छेदक सूर्य जिस प्रकार उदित होता है, उसी प्रकार अज्ञानान्धकार का नाश करने को
SR No.090380
Book TitlePrathamanuyoga Dipika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayamati Mata, Mahendrakumar Shastri
PublisherDigambar Jain Vijaya Granth Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages271
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, Literature, H000, & H005
File Size5 MB
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