SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 57
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ संसार विरक्त हो दीक्षित होने की प्रार्थना की तथा शिक्षा ग्रहण की तब प्रभु की अनुज्ञा से प्रायिका दीक्षा धारण कर सर्व प्रथम मुख्य-गणिनी HRAM HAR रीसापूर्व काही सुन्दरी शिक्षा REVI करते हुए तथा कुमार भरत एवं बाहुवली कला चित्रानोपदेश सुनते हुए पद धारण किया । उपचार महाव्रत मण्डित इनकी देवों ने महापूजा की । उसी समय दूसरी पुत्री सुन्दरी वैराग्य रस पूरित संसार शरीर भोगों का त्याग कर दीक्षित हयी। ये दोनों ही श्रेष्ठ तपारूढ हो कर्मजाल काटने में लीन हुयीं । अन्य भी अनेकों राज-कन्याओं ने ब्राह्मी से दीक्षा ले प्रारमशोधन का प्रयत्न किया। भगवान का श्री विहार.. चार घातिया कर्मों के सर्वथा नाश से उत्पन्न केवलज्ञान लक्ष्मी के धारक वृषभ देव की इन्द्र ने १००८ नामों से स्तुति की । पुनः तीर्थ विहार करने को प्रार्थना की कि "हे भगवन हे दयानिधे, हे जनपालक", आप अपनी दिव्यध्वनि रूप मेघ की धर्मामृत वर्षा कर, चातक समान भव्यों का कल्याण करें। अर्थात सर्वत्र विहार कर धर्मोपदेश दें जिससे
SR No.090380
Book TitlePrathamanuyoga Dipika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayamati Mata, Mahendrakumar Shastri
PublisherDigambar Jain Vijaya Granth Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages271
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, Literature, H000, & H005
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy