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________________ सारा wwwwwwwwwwwwnewwwwwwgrewomagrsMAAw.. पीछे दोनों भाई कुछ दूर तक चले पुनः एक स्थान पर खड़े हो भगवान के चरण चिह्न देखते रहे । उस भूमि को बार-बार नमन किया । नगर में चारों और श्रेयान् महाराज का यशोगान होने लगा। तीर्थर को प्रथम पारणा कराने वाला उसो भव में मोक्ष जाता है अथवा तीसरे में । चारों ओर से आये जन-समुह उन दोनों भाइयों को घेर कर नाना स्तुति करने लगे। अक्षय तृतीया---- भगवान आदिनाथ के प्रथम पारणा का दिन था वैशाख शुक्ला तोज । इस दिन आहार देने के बाद श्रेयांस राजा ने समस्त श्रावकजनों को आहार दान देने का उपदेश दिया, विधि-विधान समभाया । उस समय देवों ने भो बड़े प्रापचय से इस दान का महत्व प्रकट करते हए श्रेयांस महाराज की भक्ति से अभिषेक पूर्वक पुजा की । देवों द्वारा प्रकाशित महात्म्य को सुनते ही महाराज भरत भी दौड़े अाये और बडे पादर से श्रेयांस कुमार से इस रहस्य को जानने का कारण पूछा । हे महान दानपते ! मौनी भगवान के इस अभिप्राय को प्रापने कैसे जान लिया ? आज आप हमारे वृषभ स्वामी के समान ही पूज्य हो । दानतीर्थ के प्रवर्तक सबसे बड़े पुण्यवान प्राप ही हो। सत्य कहो, यह रहस्य किस प्रकार विदित हुअा ? श्रेयांस बोले. हे राजन् ! श्री वृषभ स्वामी के दर्शन मात्र से मेरा चित्त अतिशय निर्मल हो गया, मुझे बड़ी भारी प्रसन्नता हुयी. मेरा समस्त कालुष्य धुल गया, इस भाव शुद्धि से उसी भए। मुझे जातिरमारवा--(पूर्वभव का स्मरगा) हो गया। जिससे भगवान का अभिप्राय जान लिया । महाराज भरत यह सुनकर परमानन्दित हुए । वस्तुतः यह दिन अक्षय दानतीर्थ का प्रवर्तक है । इसीलिए अाज तक "अक्षय तृतीया" स्वोहार चला आ रहा है। पाहार न मिलने का कारण .... प्रत्येक कार्य अपने हेतु पूर्वक रहता है। बिना निमित्त के कार्योपति नहीं होली । भगवान मनि वीरपी को निकले और ७ माह दिन तक घूमते रहे इसका वाद्य कारमा लो लोक का आहार दान विधि नहीं जानना था किन्तु अन्तरङ्ग कारण क्या हो सकता है ? यह प्रश्न स्वाभाविक है । धर्म तीर्थ प्रवर्तक साक्षात् तीर्थङ्कर होने वाले इस [ ४३
SR No.090380
Book TitlePrathamanuyoga Dipika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayamati Mata, Mahendrakumar Shastri
PublisherDigambar Jain Vijaya Granth Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages271
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, Literature, H000, & H005
File Size5 MB
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