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है ? बड़े भाई को विनयपूर्वक कुमार श्रेयान् कहने लगे "प्रभो, प्राज रात्रि के पिछले प्रहर में मैंने अद्भुत स्वप्न देखें हैं, तभी से मेल हृदय अपूर्व उल्लास से उछल रहा है न जाने कौन अलौकिक फल होगा।' अच्छा, तो सुनाओ भाई वे स्वप्न ? सुनिये, प्रथम विशाल सुमेरु पर्वत देखा है, दूसरा लटकते हए प्राभूषणों से युक्त मात्रा वाला कल्पवृक्ष देखा, तीसरे स्वप्न में केशरी-सिंह देखा, चौथे किनारे को उखाडता बैल, पांचवें चन्द्रमा और सूर्य, छठवें समुद्र, सातवें अष्ट मंगल द्रव्य धारण की हुई व्यतर देवों को मूर्तियों देखी हैं । इनका क्या फल होगा यह प्राप बतलाइये । स्वप्न सुनते ही राजा ने पुरोहित जी से फल पूछा।
पुरोहित निमित्त लगाकर बोला, हे कुरुजांगल देशस्थ गजपुर नरेश ! महामेरु के देखने से मेरुवात उन्नत और मेरु पर जिसका अभिषेक हुधा हो ऐसा कोई महापुरुष अवश्य ही प्रापके घर माज पधारेगा। उनके द्वारा प्रापको महान् पुण्योदय प्राप्त होगा। आज हस्तिनागपुर नगर जग प्रसिद्ध होगा । बड़ी भारी सम्पति लोगों को प्राप्त होगी, हम धन्य होंगे इसमें सन्देह नहीं । अन्य स्वप्न भी उस महापुरुष के सर्वोत्तम गुणों के सूचक हैं । हे राजन् ! उस नरोत्तम का स्वागत श्रेयान द्वारा ही होगा। यह तत्व बेत्ता और विनयशील है, अवश्य ही प्राज कोई महत्ती परम्परा प्रारम्भ होगी । अवश्य कोई नर रत्न पाने वाला है। इस प्रकार दोनों भाई भगवान के विषय की कथा कर रहे थे। दोनों ही अति प्रसन्न थे।
इधर नगरी में कोलाहल होने लगा । लोग इधर-उधर दौड़ने लगे। दर्शकों को भीड़ लग गई। कोई कह रहा था अरे हमें नमस्कार तो करने दो, कोई बोला देखो सनातन प्रभो राजपाट छोड़कर वन में चले गये थे अब हम पर अनुग्रह कर लौट आये हैं। हाँ, ये अब हमारा पालनपोषण करेंगे, ये तीनों लोकों के स्वामी हैं, हाँ, हाँ सब परिगृह के त्यागी हैं, अरे तन पर तार नहीं तो भी तेज फूटा पड़ रहा है, कितना धैर्य है निर्भय अकेले ही विहार करते हैं, किसी की परवाह नहीं, थकावट भी तो नहीं है, खाना-पीना छोड़ने पर भी शरीर शिथिल नहीं है, अरे ऐसे पनीत स्वामी का दर्शन तो करने दो, हां नमस्कार करना चाहिए। पूजा करनी चाहिए । सामने आना चाहिए । इस प्रकार भगवान का गुनगान करते स्त्री, पुरुष, बाल, वृद्ध चारों ओर से आने लगे। इस कोलाहल में भी वे संयमी जिनमुनि, संवेग और वैराग्य का चिन्तवन
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