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________________ अपने पिता के जन्म दिन, लग्न, नक्षत्र, योग और राशि में उत्पन्न हुमा । महोदययुत पुत्र को देखकर दादा-दादी, माता-पिता को परमानन्द हुा । साधारण पुत्र का प्रानन्द ही अपरिमित होता है फिर षट्खण्डाधिपति पुत्र हो तो कहना ही क्या ? जातकर्म के साथ अनेक प्रकार जन्मोत्सव मनाया । बाल चन्द्रवत् बहने लगा। बालक का नाम “भरत" धरा जिसके नाम से प्रार्यक्षेत्र भारतवर्ष कहलाया । भरत के EE भाई और हए । प्रथम कामदेव द्वितीय महारानी श्री सुनन्दा देवी ने पूर्वदिशा के समान कामदेव पद धारी पुत्र रत्न को जन्म दिया। ये २४ कामदेवों में प्रथम कामदेव हुए । प्रापका बल, प्रताप और बुद्धि जैसी विलक्षण थी उतना ही अनुपम शरीर सौन्दर्य भी था । मानों सम्पूर्ण रूपराशि का सार ही हो । अाजानु वाहु होने से इनका नाम बाहुवलि या भुजबली प्रसिद्ध हुआ। तीर्थङ्गुर के कन्या रत्न सामान्यत: तीर्थयारों के कन्या की उत्पत्ति नहीं होती। भगवान वषभदेव के श्री नन्दा (यशस्वती) महारानी से "ब्राह्मी" और श्री सुनन्दा देवी से "सुन्दरी" नामक कन्याएं हुयीं। दोनों कन्याएँ अद्भुत, अनिय सुन्दरी और विलक्षण बुद्धियुक्त थीं। कन्यानों का होना हुंडाव सपिशी काल का प्रभाव था । कला एवं विद्यापों का उपदेश ... सुख की घड़ियाँ किधर जाती हैं पता नहीं चलता । एक दिन वषभ स्वामी सिंहासन पर सुखासीन थे कि सहसा उनके चिस में कला और विद्यानों के उपदेश करने की भावना जागृत हुयी । "जहाँ चाह वहाँ राह' के अनुसार उसी समय ब्राह्मी एवं सुन्दरी दोनों किशोरियों अपनी लावण्य बिखेरती उपस्थित हुयीं । दोनों ही विनयगुणा से मण्डित थीं। उन्हें देखने पर दिक्कन्यका, नागकन्या, लक्ष्मी या सरस्वती का भ्रम होता था। दोनों ही नतमस्तक, विनयपूर्वक पिता के सम्मुख पायौं । भगवान ने बड़े प्रेम से दोनों को गोद में बिठाया, कष्ठ से लगाया एवं कुछ क्षरण विनोद किया। तदनन्तर मन्द मुस्कानयुत
SR No.090380
Book TitlePrathamanuyoga Dipika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayamati Mata, Mahendrakumar Shastri
PublisherDigambar Jain Vijaya Granth Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages271
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, Literature, H000, & H005
File Size5 MB
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