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पत्नी सहित मुनिराज के पास जाकर नमस्कार किया । परम दयानिधि अकारण मित्र मुनिराज ने सरल एवं मधुर वाणी में उसे बर्मोपदेश दिया । मद्य, मांस, मधु का त्याग कराया । पञ्च रणमस्कार मंत्र दिया । भील द्वारा नगर मार्ग पर पहुँचाने से मुनिराज विहार कर गये । निरतिचार व्रत पालन कर आयु के अन्त में शान्तचित्त से समाधि मरा कर सौधर्म स्वर्ग में देव हुआ। एक सागर पर्यन्त वहाँ के अनुपम सुख भोग भरत चक्रवर्ती का मारीचि कुमार नाम का पुत्र हुआ। अपने बाबा आदीश्वर महाराज के साथ दीक्षित हो अन्य चार हजार राजाओं के साथ नष्ट हो अज्ञान तप किया। सबका मुखिया बनकर सांख्य मत चलाया | श्री वृषभ स्वामी के समवशरण में भरत के प्रश्न के उत्तर में श्री आदिनाथ स्वामी ने अपनी दिव्यध्वनी में कहा था कि यह 'मरीची' तीर्थङ्कर होगा । बस, मान कषाय के श्रृंग पर चढ अपना ही घात करता, मिथ्या प्रचार कर असंख्यातों भवों में रुलता -फिरने लगा । अन्त में काल लब्धि श्रयी ।
जम्बूद्वीप के क्षेत्रपुर नगर में राजा नन्दवर्द्धन की रानी वीरवती से नन्द नामका पुत्र हुआ । यह अत्यन्त धर्मात्मा, न्यायप्रिय और दयालु स्वभाव का था । कुछ काल राजभोग अनुभव कर उससे विरक्त हो प्रोष्ठिल नाम के मुनिराज के पास जिन दीक्षा धारण की । उग्रोग्र तपश्वरण और गुरू चरण सेवा प्रसाद से उसने ग्यारह अंगों का अध्ययन किया, शोडष कारण भावनाओं का चिन्तवन कर सम्यग्दर्शन की परम विशुद्धि से उत्पन्न निर्मल शुद्ध, परम कारुण्य परिणामों से तीर्थङ्कर गोत्र बन्ध किया। आयु के अन्त में आराधना पूर्वक समाधि कर १६ वें अच्युत स्वर्ग में उत्पन्न हुए। वहाँ २२ सागर की श्रायु, ३ हाथ का सुन्दर वैक्रियिक शरीर शुक्ल लेश्या, २२ हजार वर्ष मे एक बार मानसिक आहार, २२ पक्ष में एक बार श्वासोच्छ्वास लेता था । अब श्राया भगवान महावीर बनने का नम्बर
वर्तमान- गर्भावतरा कल्याणक---
उधर स्वर्ग में पुष्पोत्तर विमान वासी इन्द्र की आयु केवल ६ माह की अवशेष रह गयी; इधर भरत क्षेत्र के मगध देश (बिहार प्रान्त ) में कुण्डलपुर के राजा सिद्धार्थ की पटरानी प्रियकारिणी के आंगन में प्रतिदिन १२|| करोड़ नाना प्रकार के अमुल्य रत्नों की वृष्टि होने
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