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२४-१००८ श्री महावीर-वर्द्धमान जी
पर्वमय---
भगवान महवीर का जीव सम्पूर्ण संसार का अभिनेला बनकर हमारे सामने प्राता है । इसने एकेन्द्रिय से लेकर संजी पर्यायतक पञ्चे. न्द्रिय पर्यन्त की समस्त छोटी, बडी, नीच ऊँच, जाति, पर्यायों और कुलों में भ्रमण किया । असंख्यात भवों की चित्रावली प्रागम में उपलब्ध है। यहाँ मात्र दो चार भवों का संक्षिप्त दिग्दर्शन कराया जायेगा।
प्रसिद्ध जम्बूद्वीप के विदेह क्षेत्र में, पुष्कलावती देश है। उसमें स्वर्गपुरी सदृश पुण्डरीकिनी नगरी है। उसके मधु नामक वन में किसी समय पुरुरवा नाम का भीलों का राजा रहता था 1. किसी एक दिन विहार करते श्री सागरसेन नामके मुनिराज विचरण कर रहे थे । भीलराज ने उन्हें मृग समझ कर बारण का निशाना बनाना चाहा । किन्तु उसकी पत्नी कालिका ने कहा "ये वन के देवता हैं। इन्हें नहीं मारो । अन्यथा पाप से तुम संकट में पड़ जानोगे ।" भील डरा और