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________________ अयोध्या में अभ्मोत्सव - इन्द्र द्वारा मनाये जन्मोत्सव की कथा सुनकर माता-पिता ने प्रानन्द से इन्द्र की सम्मति पूर्वक प्रयोध्या निवासी स्वजन परिजनों के साथ पुत्र जन्मोत्सव मनाया। अयोध्या दुलहिन-सी सजाई गई। नर-नारी मंगल गान, संगीत, वाद्य, नृत्य आदि में संलग्न हो शरीर की सुध-बुध ही भूल गये | कौन देव देवांगनाएं हैं या मनुज, नारी भेद ही मालूम नहीं होता था । नारियाँ अप्सरा और निरियों को भी अपने नृत्य और गान से परास्त कर रहीं थीं । कहीं मैं पीछे न रह जाऊँ सोच कर ही मानों इन्द्र ने आनन्द नाटक प्रारम्भ किया जिसके रस में उभय लोक ( मध्य और ऊर्ध्व ) डूब गये । उस समय साढ़े बारह करोड़ जाति के बादित्र बज रहे थे । प्रथम ही इन्द्र ने धर्म, अर्थ और काम का श्रोतक गर्भावतरण अभिनय किया, पुनः जन्माभिषेक का महत्व दर्शाया, नन्तर महाबल, वज्रजंध आदि के १० भवों का अभिनय किया। अग में परमाणु जैसा सूक्ष्म और क्षण में सर्वव्यापी जैसा विशाल रूप बनाता । इन्द्र के अतिशयकारी नृत्य से भूमि और समुद्र भी शोभित हो गये । लद नाम करण पोरी पोरी मटका कर नृत्य कर इन्द्र ने अपने को धन्य माना । माता मरुदेवी और पिता नाभिराय को परमाश्चर्य एवं असीम आनन्द हुआ । इन्द्रों ने माता-पिता की खूब प्रशंसा की । अन्त में "ये स्वामी संसार में सर्वोत्तम है, जगत के हितकर्ता है । वर्मामृत की वर्षा करेंगे । इसलिए इनका 'areदेव' सार्थक और अन्वर्थक नाम प्रख्यात किया । 'वृष' शब्द का अर्थ धर्म होता है। ये पूज्य धर्म से सुशोभित होंगे इसी - लिए इन्द्र ने "वृषभस्वामी" नाम दिया | जन्माभिषेक और नामकरण कर इन्द्र सपरिवार अपने स्वर्ग को चले गये । भु की बालक्रीडा भगवान माँ का स्तनपान नहीं करते । इन्द्र भगवान के अंगुष्ठ में अमृत स्थापित कर देता है उसे ही चूसते हैं । इन्द्र की आज्ञा से अनेकों ta ararts बालक बनकर खेलते थे। अनेकों देवियाँ धाय बनकर दूध पिलाना, स्नान कराना मजन कराना, वस्त्रालंकार पहनाना, २२ ] r
SR No.090380
Book TitlePrathamanuyoga Dipika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayamati Mata, Mahendrakumar Shastri
PublisherDigambar Jain Vijaya Granth Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages271
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, Literature, H000, & H005
File Size5 MB
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