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हस्तिनागपुर में राजा श्री चन्द्र और रानी श्रीमती से सुप्रतिष्ठित नाम का पुत्र हमा। राज्य भोग करते उल्कापात को देख विरक्त हो दीक्षा धारण की । ११ अङ्गों का अध्ययन किया, सोलह कारण भावनाएँ भायीं और तीर्थकर प्रकृति का बंध कर समाविमरसा कर अनुत्तर विमान में अहमिन्द्र हुमा । ३३ सागर को प्रायु, १ हाथ का शरीर, शुक्ललेश्या, ३३ पक्षवाद उच्छ्वास लेता था । ३३ हजार वर्ष बाद मानसिक आहार लता था । सुस्वानुभव करते हुए भी तत्वानुप्रेक्षा में दत्तचित्त रहे । वर्तमान परिचय..... ___जम्बूद्वीप सम्बन्धी भरत क्षेत्र के कुशार्थ देश में गोरीपुर अति रमरणोक, सुविख्यात नगर था वहाँ शूरसेन नाम का राजा राज्य करता था । यह हरिवंश रूपी गगन का चमकता सूर्य था । कुछ समय बाद उसके शूरवीर नाम का पुत्र हुआ। उसकी महादेवी धारणो थी । उसके अन्धक वृष्टि और नरवृष्टि दो पुत्र हुए। अंधक बुष्टि की रानी मुभद्रा से समुद्रविजय प्रादि १० पुत्र हुए। समुद्रविजय की महादेवी शिवादेवी थी । महाराजा समुद्रविजय महाबीर और पराक्रमी थे । जरासंघ का सेनापति कालयवन कारणवश कृषा को मारने के लिए प्राया । उसका संन्यवल अधिक है यह ज्ञात कर समुद्रविजय प्रादि शौरीपुर स्याग, भागकर विध्याटवी पार कर समुद्र तट पर पहुँचे । मार्ग में इनकी कुलदेवी वृद्धा का रूप घर अनेकों चिताएँ जलाकर बैठ गयी और रोने लगो । कालयवन के पूछने पर “यदुवंशी जल मरे" कह दिया । कालयवन लोट गया । उधर कृष्ण महाराज ने प्राउ उपवास किये, डाभ के के पासन पर बैठ परमात्मा का ध्यान किया । फलतः नंगम माम का देव प्रसन्न हो प्रकट होकर कहा, समुद्र के बीच १२ योजन लम्बी-चौड़ी नगरी है, वहाँ आप जाइये । उसो क्षरण एक सुन्दर घोड़ा पाया । कृष्ण उस पर सवार हुए और समुद्र में प्रविष्ट हो गये उनके पुण्य प्रताप से स्थल मार्ग बन गया और इन्द्र की प्राज्ञा से कुवेर ने नगरी रचना भी की । इसका नाम "द्वारावती" प्रख्यात हुमा। द्वारावती में समुद्रविजय सुख पूर्वक रहने लगे। गर्भकल्याणक
वर्षाकाल आने से पूर्व आकाश में गर्वी दीखने लगते हैं, नदी में बाढ पाने वाली हो तो पानी में झाग आने दिखाई पड़ते हैं । इसी प्रकार पुण्यवान महापुरुषों के अवतार के चिन्ह भी होने लगते हैं।