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________________ ARRAWAmitUMARNAMAMIndial MMWWWMmmmmmmUIRLIM.MMAP ... महाराज समुद्रविजय का प्रांगन देवियों से भर गया ! श्री ही प्रादि देवियों महारानी शिवादेवी की अनेकों प्रकार से सेवा भक्ति प्रादि करने लगीं। देवगण रत्न वर्षा करने लगे। रुचगिरि से प्राई देवियाँ गर्भ शोधना में लग गई। यत्र-तत्र देव देवियां साझा की प्रतीक्षा में उपस्थित हो गये। यह सब देख कर यदुवशी तीर्थकर हमारे घर में अवतरित होंगे, यह निश्चय कर हर्ष से फूले नहीं समाये । इस भांति ६ माह हो गये। तब, कार्तिक शुक्ला षण्ठी के दिन उत्तराषाद नक्षत्र में रात्रि के पिछले पहर में रानी सिवादेवी ने १६ स्वप्न देखे और अन्त में विशालकाय हाथी को अपने मुख में प्रविष्ट होते देखा। स्वानान्तर बन्दीजनों के मंगल गीत वादित्रों के साथ निन्द्रा भंग हई। परमशुद्ध सिद्ध परमेष्ठी का स्मरण करते हुए शैया तज महानन्द से नित्य क्रिया की । पतिदेव के पास पहुंच स्वप्नों का फल जानने की अभिलाषा की। ...' हे मंगलरूपिणी आज तुम्हारे पवित्र गर्भ में जयन्तविमान से व्यत होकर अहमिन्द्र का जीव पाया है । नी माह बाद महायशस्वी तीर्थंकर बालक उत्पन्न होगा।" कह, महाराजा ने हर्षातिरेक से रानी को देखा। उसी समय आकाश 'जय जय' नाद से गूंज उठा। इन्द्र, देव, देवियाँ दल-बल से पाये। नाना प्रकार वस्त्रालंकार उत्तमोत्तम पदार्थों से दम्पत्ति का आदर सत्कार किया । गर्मकल्याणक महा महोत्सव मनाया। जहाँ स्वयं देव देवियाँ परिचारिका का काम करें उनके सुखोपभोग और मानन्द का क्या कहना? जन्मोत्सव-जन्म कल्याणक क्रमशः नब मास पूर्ण हुए । माता का बल, तेज, पराक्रम, ज्ञान उसरोतर बढ़ते गये । श्रावण शुक्ला वष्ठी के दिन चित्रा नक्षत्र में जिसकी कान्ति से प्रसूति गृह प्रकाशित हो उठा, सुवासित हो गया ऐसे अभदुत पुत्र रत्न को जन्म दिया। तीनों लोक हांकरों से भर गये । प्राणीमात्र क्षणभर को मानन्द में डूब गये । स्वयं स्वभाव से हुए सिंहनाद प्रादि को सुन चारों प्रकार के देव देवांगनाएँ सौधर्मेन्द्र और शची के साथ द्वारिका में पाये । इन्द्र ने सद्योजात बालक को इन्द्राणी से मंगा, सुमेरू पर लेजाकर १०० सुवर्ण कलशों से जन्मा. भिषेक किया। सभी देव देवियों ने भी उसका अनुकरण किया अर्थात [२३५
SR No.090380
Book TitlePrathamanuyoga Dipika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayamati Mata, Mahendrakumar Shastri
PublisherDigambar Jain Vijaya Granth Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages271
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, Literature, H000, & H005
File Size5 MB
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