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________________ २२- १००८ श्री नेमिनाथ जी पूर्वभवान्तर जीव के परिणामों की बड़ी विचित्रता है | क्षण-क्षण में कुछ से कुछ होते रहते हैं । भगवान नेमीनाथ का जीव पहले जम्बूद्वीप के पश्चिम विदेह के सिंहपुर नगर का अपराजित नाम का राजा था । वह् बड़ा पराक्रमी और पुण्यशाली था। एक दिन उसे विदित हुआ कि उसके पिता श्रद्दास विमलवाहन के साथ मुक्त हो गये हैं । उसी समय उसने प्रतिज्ञा की कि विमल वाहन तीर्थंकर की वाणी सुन कर ही भोजन करूँगा । श्रांठ उपवास हो गये । इन्द्र का श्रासन उसकी दढ़ प्रतिज्ञा से हिल गया । कुबेर को प्राज्ञा दे कृत्रिम समवशरण रचकर विमलवाहन जिनराज के उपदेश कराया अपराजित ने दर्शन, पूजन कर भोजन किया । अन्त में प्रायोपगमन मरण (सत्यास ) कर अच्युतेन्द्र हुआ २२. सागर प्रायुपा सुखोपभोग किये। [ २३०
SR No.090380
Book TitlePrathamanuyoga Dipika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayamati Mata, Mahendrakumar Shastri
PublisherDigambar Jain Vijaya Granth Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages271
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, Literature, H000, & H005
File Size5 MB
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