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निर्धारित किया पुनः माता-पिता को सौंप कर मानन्द नाटक किया
और पुन: अपने-अपने स्थान पर चले गये। बाल शिशु बढ़ने लगा । कुमार काला...
नमिकुमार स्वामी बाल-सुलभ मन-मोहक, क्रीड़ानों में उत्तीरग हुए । देव और समवयस्क मनुज कुमारों के साथ कुमार काल के २५०० वर्ष समाप्त हए । इनकी पूर्ण प्रायु १०००० वर्ष की थी। शरीरोत्सेध १५०० धनुष ऊँचा था । शरीर की कान्ति सुवर्ण वरणं की थी।
विवाह और राज्य-..
मोहराज का चकमा चलता ही रहता है । तीर्थङ्कर होने वाले पुण्यातमाओं को भी कुछ समय के लिए फंसा लेता है । यौवन काल ने प्रवेश किया। कामदेव सशैन्य विजयी हा । महाराजा विजयराज ने अनेक सून्दरी, नव यौवना कन्याओं के साथ नमि कुमार का विवाह कर दिया । शीघ्र ही राज्याभिषेक भी इन्द्रराज की उपस्थिति में कर दिया । धन, यौवन, प्रभुता एक साथ इन्हें प्राप्त हुयी, परन्तु विवेक नहीं गया । पुर्ण न्याय, त्याग और वात्सल्य से प्रजा पालन करने लगे । राज्य में सर्वाङ्ग विकास, सुख, शान्ति छा गयी । धर्म, अर्थ, काम के साथ-साथ मोक्ष पुरुषार्थ भी वृद्धि को प्राप्त हुआ। इस प्रकार उन्होंने ५००० वर्ष पर्यन्त निष्कण्टक राज्य किया ।
वैराम्योत्पत्ति----
भगवान मुनिसुव्रत के मोक्ष जाने के बाद ६० लाख वर्ष व्यतीत होने पर इनका प्रवतार हा । इनकी प्राय भी इसी में मभित है।
वर्षा काल था। रिम-झिम फुहारे पड़ रही थीं। श्री नमिराजा वन विहार को पधारे । मेघों की निराली छटा देख रहे थे । उसी समय प्राकाश पथ से दो देव कुमार उतरे। प्राकर उन्हें नमस्कार किया। आने का कारण पूछने पर वे कहने लगे "हे देव! हम अपराजित तीर्थर देव के समवशरण से पा रहे हैं। कल वहाँ किसी ने प्रश्न पूछा था कि इस समय भरत क्षेत्र में कोई तीर्थ धर है क्या ?" स्वामी अपराजित महंत परमेष्ठी ने कहा कि मिथिला नगरी के महाराज