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धीरे तीन प्रदक्षिणा कर माता की मंगलमय स्तुति करी । हे माते ! तुम घन्य हो, अापका ही माता बनना सार्थक है । जिस प्रकार आपका बालक संसार में अद्वितीय है उसी प्रकार आप भी अद्वितीय माता हैं। महाभागे आपके गुणों का क्या वर्णन करू ? ऋषि-मुनि भी आपकी प्रशंसा करते हैं। आज आप तीन लोक की माँ हो गई हैं। नाना स्तुति (गुप्त रूप में) कर माता को माया निद्रा में सूला दिया जिस प्रकार प्राजकल रोगी को टेबलेट देकर नींद में सुला देते हैं । माँ को पुत्र के वियाग से कष्ट न हो इसके लिए मायामयी एक बालक भी बगल में सुला दिया और उस सद्योजात तीर्थङ्कर बालक को उठा लिया । कर यूगल में लिए इन्द्राणी की प्रसन्नता असीम थी । मानों तीनोलोक का वैभव ही मिल गया हो। वह सोचती "जिस प्रकार सूर्य को जन्म देने का अधिकार पूर्व दिशा को ही है और तीर्थ श्रर को जन्म देने का भाग्य इस माता को है उसी प्रकार प्रथम बालक का सुखद स्पर्श करने का मुझे सौभाग्य प्राप्त हुआ है । जिनमाता और जिन प्रभु की भक्ति-पूजा और सेवा से अवश्य ही में एक भव धारण कर सिद्ध पद पाऊँगी ।"
भगवान का रक्त दूध के समान सफेद था । ठीक ही है एक बालकपूत्र पर स्नेह करने वाली माता के स्तनों का रक्त दूध रूप में परिणित हो जाता है तो प्राणी मात्र के प्रति स्नेही, दयालु, परमोपकारी प्रभ का सङ्गि रक्त दूध रूपी होना ही चाहिए। समचतुरस संस्थान और बनवृषभ नाराच संहननधारी भगवान की रूप राशि का कोन वर्णन कर सके ? परमानन्द से विभोर मन्त्री प्रसूतिगृह से बालक लेकर बाहर निकली । चारों ओर प्रकाश फैल गया मानों निशा तिमिर का संहार कर बाल रवि उदित हुअा हो।
इन्द्र के सहस्रनेत्र --
दीर्घ प्रतीक्षा के बाद अभीष्ट सिद्धि विशेष प्रानन्दकारी होती है। तेज भुख में भोजन का माधुयं द्विगुणित हो जाता है ! इन्द्र पलक पबिड़े बिछाये शची देवी के आगमन की प्रतीक्षा कर ही रहा था कि परम पुनीत सौन्दर्य सारभूत बालक को गोद में छिपाये इन्द्राणी उपस्थित हयी । इन्द्राणी के प्रागे-मागे देवियां छत्र, ध्वजा, कलश, चमर, सप्रतिष्ठ (ठोना) झारी, दर्पण, ताष्टका पंखा इन प्राठ मगल द्रव्यों को लिए हुए पा रही थीं। अत्यन्त वैभव के साथ अति उमंग से शची १८ ]