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इन्त्र का हाथी----
(ऐरावत) ----यह एक लाख योजन का होता है । इसके १०० मुख होते हैं । प्रत्येक मुख में आठ-पाठ दाँत होते हैं। प्रत्येक दाँत पर एकएक सरोवर होता है । एक-एक सरोवर में १२५ कमलिनी (कमललता) होती हैं। प्रत्येक कमलिनी पर परचीस कमल होते हैं। एक-एक कमल की एक सौ आठ पंखुड़ियाँ होती हैं। प्रत्येक कली पर एक-एक अप्सरा नृत्य करती है । इस प्रकार १x१०० x ८४ १२५४ २५४ १०८x१२७००००००० अप्सराएँ नत्य करती हैं।
इसी पर इन्द्र शची सहित बैठकर अनेकों देवों से समन्वित होकर आता है। इस गज का वर्णन भी अदभुत रस जगाता है । दैविक चमत्कार का अद्वितीय रूप है यह । विक्रिया शक्ति से देवों में कल्पनातीत योग्यता रहती है । इस प्रकार धम-धमाती, माती-बजाती, उछलतीकृदती हर्षोल्फुल्ल इन्द्र सेना ने अयोध्या की तीन प्रदक्षिणा दी। चारों प्रोर बारह करोड़ बाओं को ध्वनि गूंज उठी । जय-जय नाद से भू-नभ निनादित हो गये । नत्य, वाद्य एवं गीतों की लय में सारी सृष्टि खो गई 1 हर्षोन्माद में झूमते नर-नारी कहाँ हैं, क्या कर रहे हैं स्वयं को ही भूल से गये । कभी पृथ्वी पर देखते तो कभी गमनांगरण में निहारते । इन्द्र की सेना जल प्रवाह की भांति तरंगित हो रही थी। प्राकाश सागर-सा जान पड़ता था । समस्त देवगरण अपने-अपने वाहनों पर चढ़कर आकाश को व्याप्त कर रहे थे मानों स्वर्ग के ६३ पटल धरा पर ही उतर कर आना चाहते हैं । उत्कृष्ट ऋद्धियोधारी देव सेना धीरे-धीरे अयोध्या में उतर कर श्री नाभिराय के प्रांगन में प्रा गई।
तीथंडर बालक का प्रथम दर्शन
इन्द्रारिण का कर्सम्या -...
बड़भागिनी शचि का पुण्यांकुर बढ़ा । रुनझुन पैजनियाँ बजाती, थिरकती उल्लास भरी प्रसूति गह में प्रविष्ट हुई। प्रभु के प्रालौकिक रूप, शरीर से निकलती मनोहर सुरभि, पसेव रहित, मल-मूत्रादि रहित शरीर की अनुपम छवि को देखते ही रह गयी । आनन्दातिरेक से धीरे
१( प्रा० पु. पृ० ८३६ )