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दूसरा सूक्ष्म । आज के भौतिकवादी वैज्ञानिकों ने एक "ईथर" नाम का तत्व माना है जिसके माध्यम से हजारों-लाखों मील का शब्द रेडियो यंत्र द्वारा सुनाई पड़ता है। इस विषय में प्रागम का यह प्राधार ध्यान देने योग्य है । पुद्गल के शब्द, बंध आदि पर्याय भेदों में सूक्ष्मता के साथ स्थलता भी बताया है । तत्त्वार्थ राजवातिका में श्री अकलंक देव स्वामी ने लिखा है "द्विविध स्थौल्यमवगन्तब्यंतधान्यं जगद्व्यापिनि महास्कन्धे" (अ० सूत्र २४ ) पुद्गल की अंतिम स्थूलता, जगत् भर में व्याप्त महास्कंध में है, इसी के द्वारा जिन जन्म की सूचना तस्दाग समस्त लोक अर्च, मध्य और अधो लोक में ज्ञात हो जाती है। अस्तु समस्त देव देवियाँ इन्द्र इन्द्राणो सहित जिन भगवान का जन्मोत्सव मनाने के लिए सौधर्म को सुधर्मा सभा में समन्वित हो जाते हैं। यहीं से इन्द्र राजा अपने वैभव के साथ जुलूस प्रारम्भ करता है।
इन की सेना....
यद्यपि स्वर्गलोक में सभी देव हैं. सभी के देवगति नाम कर्मोदय है तो भी होन पुण्य होने से किल्विषक जाति के देवों को इन्द्र की प्राजानुसार विविध वाहन रूप धारण करना पड़ता है। इसी प्रकार किल्विषक देव भी अशुद्ध पिण्ड नहीं होने पर भी क्षीण पुण्य के कारसह शूद्रों के समान अन्य देवों से अलग रहकर गमन करते हैं। सात प्रकार की सेना
१. गजरूप धारी देवों की सेना । २. तुरंग-घोड़ेरूप धारी देव सेना । ३. रथरूप धारी देव सेना । ४. पैदलरूप धारी देव सेना । ५. वृषभरूप धारी देव सेना। ६. गंधर्व-गान-गायक रूपी देव ७. नृत्य कारिणी देव सेना।
समस्त देव देवी गण निषाद स्वर में तीर्थ पुर भगवान के छियालीस गुण और उनके पुण्य जीवन का. मधुर गुणानुवाद एवं जयजयकार करते हए पाते हैं ।
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