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________________ कर जनेश्वरी दीक्षा ले ११ अंगों का अध्ययन कर १६ कारण भावनामों का चिन्नबन कर नायडू गोत्र मंत्र किया । माग के अम्र में माहिर मरण कर १६ ३ पुष्पोत्तर विमान में उत्तम देव हुआ । गर्भावतरण... सोलहवें स्वर्ग में २२ सागर की आयु पूर्ण हो गई निमिध मात्र के समान ! मात्र ६ माह शेष रह गये । इधर भू-लोक में अद्भुत घटना हई । जम्बूद्वीप के भरत क्षेत्र में अयोध्या महानगरी है। इसका राजा इक्ष्वाकुवंशी, काश्यपगोत्रीय सिंहसेन थे । इनके प्रांगन में नाना रनों की वर्षा प्रारम्भ हो गई । त्रिकाल प्रतिदिन प्राकाण से गिरती रत्नधारा ने सबको संतुष्ट कर दिया । इस प्रकार छ माह पूरग हुए। महादेवी (रानी) जयश्यामा सुख निद्रा में निमग्न है । वह समझ भी नहीं पायी कि कार्तिक कृष्णा प्रतिपदा से उसे शरद पूणिमा बनकर पायेगी । रेवती नक्षत्र में रात्रि के अन्तिम पहर में उसने सोलह स्वप्न देसे और अन्त में मुख में प्रविष्ट होते हाथी देखा । प्रात: मंगल वाद्यों के साथ जाग्रत हो, नित्यकर्म से निवत हो राजसभा में पधारी । पतिदेव से स्वप्नों का फल ज्ञात करने की भावना व्यक्त की । महाराजा सिहसेन ने भी "भावो तीर्थर" का गर्भाक्तरग हश्रा है" बतलाकर परमानन्द प्राप्त किया । रुचक गिरि वासी देवांगनायों द्वारा धित मुगंधित, शुद्ध गर्भ में देव पाकर अवतरित हुआ। उसी दिन चारों प्रकार के देव-देवियाँ इन्द्र-इन्द्रागिायाँ स्वगीथ सुख-दंभव छोडकर गर्भकल्यानाक महोत्सव मनाने आये। माता की पूजा की सेवा की-मनोरंजन किया । ग्रामोद-प्रमोद के साथ उत्सव मनाकर अपने अपने स्थान गये । अनेकों देवियाँ इन्द्र की प्राज्ञा से माता की सेवा करने लगी। बिना किसी कष्ट और विकार के मुख से गर्भस्थ बालक प्रभ बढ़ने लगे। अन्म कल्याणक शनैः शनै: नव मास पूर्ण हो गये। ज्येष्ठ कृष्णा द्वादशी के दिन पुण्ययोग में पुण्यवान भावी भगवान बालक को उत्पन्न किया । बालक की कान्ति से कक्ष प्रकाशित हो गया। माँ साता से निदा की गोद में सो गई। एक क्षरण को नारकियों ने भी सुखानुभव किया । तत्क्षण सौधर्मेन्द्र चारों निकायों के देव-देवियों सहित पाया । शचि देवी ने १७४ }
SR No.090380
Book TitlePrathamanuyoga Dipika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayamati Mata, Mahendrakumar Shastri
PublisherDigambar Jain Vijaya Granth Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages271
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, Literature, H000, & H005
File Size5 MB
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