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________________ प्रसूतिगृह से बालक को ला इन्द्र को प्रदान किया । हजार नेत्रों को पसारे इन्द्र ने बालक को ऐरावत हाथी पर प्रासीन किया। समेरु की पाण्डक शिला पर लेजाकर विराजमान किया । हार्थों-हाथ लाये क्षीरसागर जल के १००८ कलशों से सद्योजात बालक का जन्माभिषेक किया । सार्थक 'अनन्तनाथ' भाम प्रख्यात किया । 'ही' का चिन्ह (लाग्छन) निर्धारित किया । इन्द्राणी द्वारा वस्त्राभूषणों से अलंकृत बालक को पुनः अयोध्या में लाकर माता की गोद में शोभित कर मानन्द नाटक किया । सपरिवार स्वर्गधाम लौट गये । अन्तराल विमलनाथ परहंत के नौ सागर और पौन पल्य बीतने पर अनन्तनाथ हुए। इनकी आयु भी इसी में सम्मिलित है। इनकी आयु ३० लाख वर्ष की थी। पचास धनुष ऊँचा वपुशरीर था । वैदीप्यमानसुवरणं के समान शरीर को कान्ति थी । कुमार काल देव कुमारों के साथ खेल-कूद में बडे प्रानन्द से बालक बहने लगा। संसार का सितारा भला किसे प्रिय न होता ? सवको प्रानन्द देने वाला था। सात लाख ५० हजार वर्ष व्यतीत हो गये । यौवन में प्रवेश हमा। परन्तु रूप लावण्य आकृति में कोई विकार नहीं पाया । इन्द्र की परामर्श से सिंहसेन ने अनेकों सुन्दर नव यौवना सुकुमारी राज कन्याओं के साथ इनका विवाह किया। कुछ ही दिनों में राज्यभार भी समर्पित कर दिया । राज्यकाल और बराग्य महाराज अनन्तनाथ, दयालु, परम कृपालु, प्रजापालक, धर्मभीरु राजा था । सम्यक्त्वमरिण विभूषित विचारों में पाप का लेश नही था । उनकी प्रत्येक क्रिया पाप-कर्ममल प्रक्षालन की निमित्तभूत थी। प्रजा उनके अनुशासन में रहकर आत्मस्वातन्त्रय रूप प्रानन्दानुभव करती। सभी श्रावकोंचित क्रियाओं में निरत थे। जिन स्नपन, पूजन, स्तवन, शास्त्र स्वाध्याय, जप और दान देने में दक्ष थे। इस प्रकार सुख शान्ति से राज्यभोग करते १५ लाख वर्ष समाप्त हुए। [ १७५
SR No.090380
Book TitlePrathamanuyoga Dipika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayamati Mata, Mahendrakumar Shastri
PublisherDigambar Jain Vijaya Granth Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages271
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, Literature, H000, & H005
File Size5 MB
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