________________
१४- १००८ श्री अनन्तनाथ जी
पूर्व मव---
यौवन का सार है त्याग, धन का फल है दान, विद्या का फल है विनय, प्रभुता का सार है अनुग्रह, इसी प्रकार राज्य प्राप्ति की गरिमा है न्याय प्रजावत्सलता । घातकी खण्ड द्वीप के पूर्व मेरु की ओर उत्तर देश में एक अरिष्ट नाम का सुन्दर नगर था । इसका पालक प्रवनिपाल पद्मरथ नाम का राजा था । उपर्युक्त सभी गुण एक साथ इसमें पाये जाते थे । पुण्योदय से समस्त सौभाग्य-सुख सम्पत्ति इसे प्राप्त थी । तो भी अहंकार और ममकार का लेश भी नहीं था । सदैव संवेग और निर्वेद भावना में लीन रहता ।
महाराजन् ! उद्यान में 'स्वयंप्रभ' जिनराज पधारे हैं । वनपालक ने विशप्ति की । वह दर्शनार्थ गया । विनय पूर्वक दर्शन कर धर्मोपदेश सुना । उसे वैराग्य प्रकट हुआ । उसने अपने पुत्र धनरथ को राज्यार्पण
[ १७३