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________________ Miliyालमा ...."RPAN . .. HD I mpaihinimi | HORROR १३-१००८ श्री विमलनाथ जी पूर्वमव परिचय---- अनादि संसार में जीव भी अनादि से परिभ्रमण करता आ रहा है । क्या उसका वर्णन शक्य है ? नहीं । अन्त के दो चार भवों का ही वर्णन हो सकता है। धातकीखण्ड द्वीप जम्बू द्वीप से द्विगुणा विस्तार वाला है। आज हम ६ महादेशों को मात्र संसार मान बैठे हैं किन्तु यह सागर में बिन्दु के समान भी नहीं है। जैनागम में असंख्यात द्वीप-सागर कहे हैं उनमें .यह दूसरे नम्बर का है इसमें मेरु के पश्चिम भाग में सीतानदी के तट पर रम्यकावती देश है । उसमें पासेन राजा राज्ध करता था। इसके राज्य में पाश्चर्यकारी विचित्र रचना थी । चोर नहीं थे चोरी भी नहीं, कोई पर स्त्री हरण नहीं करता था, कोई भी वर्ण व्यवस्था का उल्लंघन नहीं करता था। झंठ बोलना, निन्दा करना, एक दुसरे का अपमान [ १६२
SR No.090380
Book TitlePrathamanuyoga Dipika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayamati Mata, Mahendrakumar Shastri
PublisherDigambar Jain Vijaya Granth Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages271
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, Literature, H000, & H005
File Size5 MB
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